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Tuesday, August 9, 2011

वेद शास्त्रों से-विषयों से रसरहित होना ही मोक्ष है (ved shastron se-vishayon se ras rahit hona moksh)

        हमारे देश के अनेक कथित ज्ञानी अपने अल्पज्ञान से लोगों को मोक्ष का गलत पाठ पढ़ाते हैं। इसका आशय यह है कि मनुष्य मरने के बाद पुनः इस संसार में न लौटे। इससे अनेक लोग घबड़ा जाते हैं। हर मनुष्य यह चाहता है कि वह इस संसार में पुनः मनुष्य यौनि में ही आये। उसकी इस भावना का धर्म के ठेकेदार बहुत लाभ उठाते हैं और उसे दान पुण्य कर सकाम भक्ति के लिये प्रेरित करते हैं। इतना ही नहीं मनुष्य यौनि से पहले स्वर्ग का सुख भोगने की भी यह लोग गांरटी देते हैं। इस तरह धर्म एक सीमित अर्थ वाला विषय रह गया है। दरअसल मोक्ष का मतलब यह कतई नहीं है कि मरने के बाद आदमी फिर इस संसार में नहीं लौटेगा। अभी तक यह तय नहीं है कि मनुष्य या अन्य जीवों का इस संसार में लौटना होता है कि नहीं। आत्मा अमर है यह निश्चित है पर परमात्मा अनंत है और उसकी लीला को वही जानता है।
        दरअसल हमारा अध्यात्म मनुष्य को मन पर इस तरह नियंत्रण करना सिखाता है कि वह कम से कम इस अलौकिक मनुष्य यौनि में अपना जीवन व्यर्थ के विषयों के बर्बाद न करे। आनंद का अर्थ समझे। वरना तो स्थिति यह होती है कि आदमी अपने मन को प्रसन्न करते हुए अनेक साधन जुटा लेता है पर सुख ले नहीं पाता। सुख कोई दिखने या हाथ आने वाली चीज नहीं है बल्कि अनुभूति का विषय है और यही समझने वाले ज्ञानी कहलाते हैं जिनकी संख्या उंगलियों पर गिनने लायक हैं।
वेदशास्त्रों में कहा गया है कि
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मोक्षो विषयवैरस्यं बन्धो वैषयिको रसः।
सतावदेव विज्ञानं यथेच्छसि तथा कुरु।।
           ‘‘विषयों में से रस का चला जाना ही मोक्ष है और विषयों में रस का होना ही बंधन है। विज्ञान इतना ही। वैसे जिसकी इच्छा है वही काम करे।’’
इन्द्रियाण विचरतां विषयेष्वपहारिषु।
संयम यत्नमातिष्ठेद् विद्वान् यन्तेव वाजिनाम्।।
             ‘इंद्रियों का स्वभाव है कि वह विषयों में ही विचरती हैं। मनुष्य को कुशल सारथि की भांति उन पर नियंत्रण करना चाहिए।’’
        किसी वस्तु की प्राप्ति से पहले आदमी संघर्ष करता है पर बाद में वह कितना सुख अनुभव कराती है यह कौन विचार करता है। आसक्ति वस्तु प्राप्त करने तक ही सीमित है पर उसके उपयोग से सुविधा मिलती है न कि सुख का अनुभव होता है। सुख या आनंद त्याग में है। किसी वस्तु के मिलने पर हर्ष या न मिलने पर जब निराशा न हो तब यह समझना चाहिए कि हमने मोक्ष पा लिया। आसक्ति तनाव का कारण बनती है और विरक्ति सहजता का भाव पैदा करती है। इसी विरक्ति को मोक्ष कहा जाता है। मोक्ष का मतलब है आसक्ति का मर जाना। आसक्ति मरने का मतलब है तनावरहित जीवन गुजारना। यही ज्ञान और विज्ञान है।
संकलक, लेखक एवं संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर
writer and editor-Deepak Raj Kukreja 'Bharatdeep', Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com
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2 comments:

Sawai Singh Rajpurohit said...

बहुत ही अच्छा लिखा है

Sawai Singh Rajpurohit said...

मेरे ब्लॉग पर भी आपका स्वागत है!!

ब्लॉग की 100 वीं पोस्ट पेश करते हुए मुझे खुशी और हर्ष हो रहा है!

यहाँ प्रतिदिन पधारे

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