आजकल जीवन और रहन सहन का स्वरूप बदल गया है। इतना ही नहीं दिनचर्या और कार्य करने की शैली भी इतनी इतनी बदल गयी है कि लोग अपने पेट के लिये कमाने का दावा अवश्यक करते हैं कि पर सेवन किये जाने वाले पदार्थ से उनके स्वास्थ्य पर कितना अच्छा या बुरा प्रभाव पड़ता है इसका अध्ययन नहीं करते। हमारे यहां दूध से बने भोज्य पदार्थ-दही, मक्खन और घी-शरीर के लिये अत्यंत लाभकारी और शक्तिबर्द्धक माने जाते हैं जबकि प्रचार इस बात का किया जाता है कि मांस से मनुष्य की शक्ति बढ़ती है। यह सिद्धांत भ्रम पर आधारित है। हमारे अध्यात्मिक दर्शन के अनुसार देशी घी अत्यंत शक्तिवर्द्धक है और उसमें मांस से दस गुना अधिक शक्ति होती है।
महान नीति विशारद चाणक्य कहते हैं कि
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अन्नाद्दशगुणं पिष्टं पिष्टाद्दशगुणं पयः।
पयसोऽष्टगुणं मांसं मांसाद्दशगुणं घृतम्।
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अन्नाद्दशगुणं पिष्टं पिष्टाद्दशगुणं पयः।
पयसोऽष्टगुणं मांसं मांसाद्दशगुणं घृतम्।
‘‘अनाज से दस गुना गुण आटे में, आटे से दस गुना अधिक शक्ति दूध में, दूध से आठ गुना अधिक मांस में है और मांस से दस गुना अधिक शक्ति घी में है।
शाकेन रोगा वर्धन्ते पयसा वर्धते तनुः।
धृतेन वर्धते वीर्य मांसान्मांसं प्रवर्धते।।
धृतेन वर्धते वीर्य मांसान्मांसं प्रवर्धते।।
‘‘साग से रोग बढ़ते हैं, दूध से शरीर, घी से वीर्य और मांस से मांस बढ़ता है।’’
आजकल फास्ट फूड के सेवन के नाम पर अस्वास्थ्यवर्द्धक वस्तुओं का सेवन बहुत तेजी से बढ़ा है जिस कारण अस्पतालों में मरीजों की भीड़ अधिक होने लगी है। अब हालत यह है कि युवा वर्ग में भी हृदय रोग, मधुमेह और अन्य ऐसे रोग घर करने लगे हैं जो आमतौर से बढ़ी आयु वर्ग के लोगों में दिखाई देते है। स्वास्थ्य विशेषज्ञ देश में रोगी समाज की वृद्धि से चिंतित है पर इस मूल बात पर किसी का ध्यान नहीं है कि यह सब खानपान की बदलती प्रवृत्ति के कारण है। आज के युवा वर्ग को यह बात समझना चाहिए कि भारतीय स्थितियों के अनुकूल परंपरागत भोज्य पदार्थों को सेवन कर अपने स्वास्थ्य का उच्च स्तर बनाये रखे।
संकलक, लेखक एवं संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर
writer and editor-Deepak Raj Kukreja 'Bharatdeep', Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com
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