समस्त ब्लॉग/पत्रिका का संकलन यहाँ पढ़ें-

पाठकों ने सतत अपनी टिप्पणियों में यह बात लिखी है कि आपके अनेक पत्रिका/ब्लॉग हैं, इसलिए आपका नया पाठ ढूँढने में कठिनाई होती है. उनकी परेशानी को दृष्टिगत रखते हुए इस लेखक द्वारा अपने समस्त ब्लॉग/पत्रिकाओं का एक निजी संग्रहक बनाया गया है हिंद केसरी पत्रिका. अत: नियमित पाठक चाहें तो इस ब्लॉग संग्रहक का पता नोट कर लें. यहाँ नए पाठ वाला ब्लॉग सबसे ऊपर दिखाई देगा. इसके अलावा समस्त ब्लॉग/पत्रिका यहाँ एक साथ दिखाई देंगी.
दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका


हिंदी मित्र पत्रिका

यह ब्लाग/पत्रिका हिंदी मित्र पत्रिका अनेक ब्लाग का संकलक/संग्रहक है। जिन पाठकों को एक साथ अनेक विषयों पर पढ़ने की इच्छा है, वह यहां क्लिक करें। इसके अलावा जिन मित्रों को अपने ब्लाग यहां दिखाने हैं वह अपने ब्लाग यहां जोड़ सकते हैं। लेखक संपादक दीपक भारतदीप, ग्वालियर

Tuesday, June 7, 2011

पतंजलि योग विज्ञान-योगाभ्यास से शरीर की संरचना को जाना जा सकता है (patanjali yogavigyan yogaabhyas se sharir ki sanrchana ka gyan)

         भारतीय योग विज्ञान का अध्ययन किया जाये तो उसके व्यापक प्रभाव परिलक्षित होते हैं। इसमें वर्णित क्रियाओं का अभ्यास करने सें देह के स्वस्थ होने के साथ ही जहां मन में स्फृटित विचारों की धारा का प्रवाह तो होता ही है वहीं तमाम ऐसे विषयों और व्यक्तिों के बारे में ज्ञान होता है जो हमारे निकट नहीं होते। उनके दर्शन करते हुए उनके आचार विचार का अध्ययन ध्यान के माध्यम से भी किया जा सकता है। यह अलग बात है कि कुछ लोग अपने अंदर आयी स्फृटित धाराणाओं को सही अध्ययन नहीं कर पाते क्योंकि उनको योग विज्ञान के संपूर्ण सूत्रों का ज्ञान नहीं हो पाता।
              पतंजलि योग सूत्र में कहा गया है कि
                      ----------------
          नाभिचक्रे कायव्यूहज्ञानम्।
         ‘‘नाभिचक्र में संयम या ध्यान करने शरीर के व्यूह यानि पूर्ण संरचना का ज्ञान हो जाता है।’’
          कण्ठकूपे क्षत्पिपासानिवृत्तिः।।
        ‘‘कण्ठकूप में संयम या ध्यान करने से भूख और प्यास की निवृत्ति हो जाती है।’’
         कूर्मनाडयां स्थैर्यम्।।
        ‘‘कूर्माकार जिसे नाड़ी भी कहा जाता है में संयम या ध्यान करने से स्थिरता होती है।’’
        मूर्धज्योतिषि सिद्धदर्शनम्।।
        ‘‘मूर्धा की ज्योति में संयम या ध्यान करने से सिद्ध पुरुषों के दर्शन होते है।’’
          योग विज्ञान के ज्ञाता लोगों को तत्वज्ञान के लिये श्रीमद्भागवत गीता का अध्ययन करना चाहिए। उसमें भगवान श्रीकृष्ण ने योग के प्रभावों का विशद वर्णन किया है। ‘गुण ही गुणों में बरतते हैं’ और इंद्रियां ही इंद्रियों में बरतती है’ यह तो ऐसे सूत्र हैं जिनका योग विज्ञानियों को का अवश्य अध्ययन करना चाहिए। जहां योग विज्ञान में यह बात बताई गयी है कि किस तरह अपनी इंद्रियों पर ध्यान रखकर उनको संयमित किया जा सकता है वहीं श्रीमद्भागवत गीता में यह स्पष्ट किया गया है कि स्थिरप्रज्ञ मनुष्य ही जीवन का सबसे अधिक आनंद उठाता है। सामान्य लोग अपने चंचल मन के साथ इधर उधर भटकते हैं वहीं योग विज्ञानी एक ही जगह स्थिर रहकर संसार को अपनी अंतदृष्टि से देख लेते हैं।
----------
लेखक संकलक एवं संपादक-दीपक राज कुकरेजा  'भारतदीप',Gwalior
Editor and writer-Deepak Raj Kukreja 'Bharatdeep'
http://deepkraj.blogspot.com
-------------------------
यह पाठ मूल रूप से इस ब्लाग‘शब्दलेख सारथी’ पर लिखा गया है। अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की शब्द लेख पत्रिका
2.दीपक भारतदीप की अंतर्जाल पत्रिका
3.दीपक भारतदीप का चिंतन

No comments:

विशिष्ट पत्रिकायें