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Saturday, February 12, 2011

प्राणायाम से व्यक्त्तिव में निखार आता है-हिन्दू धार्मिक विचार (pranayam se vyaktitva mein nikhar-hindu dharmik vichar)

भारतीय अध्यात्मिक दर्शन के पितृपुरुष योग साधना के जनक पतंजलि के साहित्य में योगासनों की चर्चा अधिक नहीं है पर प्राणायाम का महत्व उसमें बहुत प्रभावी ढंग से व्यक्त किया गया है। श्रीमद्भागवत् गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने आसनों से अधिक प्राणायाम की चर्चा की है। वास्तव में यह प्राणायाम एक तरह से तप है जिसके माध्यम से हमारे देश में अनेक ऋषियों, मुनियों तथा तपस्वियों ने साधना कर ज्ञानार्जन किया। उन्होंने अपने अनुभव को समाज के सामने रखा और उनके सृजन की वजह से ही हमारा देश पूरे विश्व में अध्यात्मिक गुरु की छवि बना सका है।
इस विषय में पतंजलि योग में कहा गया है कि
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प्राणायमाः ब्राहम्ण त्रयोऽपि विधिवत्कृताः।
व्याहृति प्रणवैर्युक्ताः विज्ञेयं परमं तपः।।
"किसी साधक द्वारा ओऽम तथा व्याहृति के साथ विधि के अनुसार किए गए तीन प्राणायामों को भी उसका तप ही मानना चाहिए।"
दह्यान्ते ध्यायमानानां धालूनां हि यथा भलाः।
तथेन्द्रियाणां दह्यान्ते दोषाः प्राणस्य निग्राहत्।।
"अग्नि में सोना चादीए तथा अन्य धातुऐं डालने से जिस प्रकार उनकी अशुद्धता दूर होती है उसी प्राणायाम करने से इंद्रियों के सारे पाप तथा विकार नष्ट होते हैं।"
प्राणायाम दो प्रकार से होता है। एक तो सांस अंदर कुछ देर रोकर फिर उसका विसर्जन किया जाता है दूसरा सांस बाहर निकालकर फिर उसे रोक दिया जाता है। कुछ देर बाद फिर तेजी से सांस ली जाती है। सामान्य दिखने वाला यह अभ्यास अत्यंत  तीक्ष्ण प्रभाव पैदा करने वाला होता है। इससे न केवल शरीर में बल बढ़ता है बल्कि व्यक्तित्व आकर्षक बनने के साथ ही मानसिक दृढ़ता भी आती है। मन, शरीर और विचार के विकार निकलने के साथ बुद्धि में तीक्ष्णता और चिंतन की शक्ति में वृद्धि होती है।
लेखक संकलक एवं संपादक-दीपक राज कुकरेजा  'भारतदीप',Gwalior
Editor and writer-Deepak Raj Kukreja 'Bharatdeep'
http://deepkraj.blogspot.com
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