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Saturday, December 4, 2010

पतंजलि योग साहित्य-चेतन शक्ति से एकाकार होने पर ज्ञान हो जाता है (patanjali yoga sahitya-chetan shakti se gyan)

चितेरप्रतिसंक्रमायास्तदाकारापत्त्ली स्वबुद्धिसंवेदनम्।।
हिन्दी में भावार्थ-
मनुष्य के अंदर स्थित चेतन शक्ति क्रिया से रहित और असंग है तो भी उससे एकाकार हो जाने पर बुद्धि का ज्ञान हो जाता है।
द्रष्टदृश्योपरक्तं चित्तं सर्वार्थम्।।
हिन्दी में भावार्थ-
द्रष्टा और दृश्य के मेल से चित सब अर्थवाला हो जाता है।
वर्तमान संदर्भ में संपादकीय व्याख्या-हर जीव में स्थित प्राण को हम आत्मा के रूप में जानते हैं। यही चेतन शक्ति भी है। मूलतः यह निष्क्रिय रहता है क्योंकि हर जीव भोजन, मनोरंजन तथा सोने की क्रियाओं में इतना व्यस्त रहता है कि उसके लिये यह संभव नहीं हो पाता कि वह अपने चेतन का साक्षात्कार कर सके। पशुओं के लिये तो यह संभव नहीं है पर वह शक्ति होने पर भी मनुष्य उसका साक्षात्कार नहीं कर पाता। इसके लिये योगाभ्यास करना आवश्यक है। हम मन, बुद्धि तथा अहंकार की प्रकृत्तियों को अपने जीवन का अभिन्न हिस्सा समझ लेते हैं और उनके निर्देश पर होने वाली दैहिक गतिविधियों को अपने हाथ से संपन्न मानते हैं। यह भ्रम है। वास्तव में हम वही चेतन शक्ति या आत्मा है जो निष्क्रिय है और बिना उसकी तरफ ध्यान किये उसे सक्रिय नहीं किया जा सकता है। सुनने, बोलने और देखने की क्रियाओं का बोध उसमें तभी आता है जब मनुष्य ध्यान के माध्यम से उस चेतना शक्ति को सक्रिय करता है।
जब हम ध्यान करते हैं तब अपने अंदर स्थित समस्त अंगों पर दृष्टि जाती है। उस समय प्राण मस्तिष्क में स्थित होकर संपूर्ण देह से साक्षात्कार करता है जिससे उसमें सक्रियता आती है। तब मनुष्य दृष्टा हो जाता है और अपने सामने घटित समस्त दृश्यों पर वह उसी चेतन शक्ति से चिंतन करता है। यही कारण है कि हमारे अध्यात्मिक दर्शन में ध्यान की अत्यंत महिमा बताई गयी है।
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संकलक एवं संपादक-दीपक राज कुकरेजा  'भारतदीप',Gwalior
Editor and writer-Deepak Raj Kukreja 'Bharatdeep'
http://deepkraj.blogspot.com

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