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Saturday, September 18, 2010

कौटिल्य का अर्थशास्त्र-सफलता के लिये जनविरोधी काम न करें (kotilaya ka arthashastra-safalta ke liye janvirodhi kaam na karen)

आयत्याञ्प तदात्वे च यत्स्यादास्वादपेशलम्।
तदेव तस्य कुर्वीत न लोकद्विष्टमाचरेत्।।
हिन्दी में भावार्थ-
भविष्य की अच्छी संभावनाओं को देखते हुए बुद्धिसे जो कार्य करने में अच्छा लगे वही प्रारंभ करे परंतु कभी भी सफलता के लिये जनविरोधी काम न करें।
श्लाघ्या चानन्दनीया च महतामुफ्कारिता।
करले कल्याणगायत्ते स्वल्पापि सुमहोदयम्।
हिन्दी में भावार्थ-
उच्च पुरुषों का उपकार कर्म अत्यंत प्रिय तथा आनंदमय लगता है वह अगर किसी का भी थोड़ा कल्याण करते हैं तो उसका महान उदय होता है।
वर्तमान संदर्भ में संपादकीय व्याख्या-हर मनुष्य में पूज्यता और अहंकार का भाव होता है। जब किसी को धन, पद और प्रतिष्ठा प्राप्त होती है तो फूलकर कुप्पा नहीं समाता और कई लोगों का तो मन ही विचलित हो जाता है। शक्ति आने पर ही अनेक लोग संतुष्ट नहीं होते बल्कि उसका प्रभाव समाज पर दृष्टिगोचर हो और वह डरे इसी उद्देश्य से कुछ लोग अपने बड़प्पन का दुरुपयोग करने लगते हैं। आजकल हम देख सकते है कि देश में अमीरों, उच्च पदस्थ तथा बाहूबली लोगों का आतंक पूरे समाज पर दिखाई देता है। शक्तिशाली वर्ग के लोग अपनी शक्ति से छोटों को संरक्षण देने की बजाय अपनी शक्ति का उपयोग उनको दबाकर आत्म संतुष्टि कर लेते हैं। यही कारण है कि समाज में वैमनस्य का भाव बढ़ रहा है।
हम अनेक लोगों का उनके धन, पद और बल की वजह से बड़ा मान लेते हैं पर सच यह है कि वह समाज का भला करना नहीं जानते। बड़े आदमी की थोड़ी कृपा से छोटे आदमी प्रसन्न हो सकत हैं पर इसको समझने की बजाय उसे कुचलकर अपने आप को खुश करना चाहते हैं।
बड़ा हुआ तो क्या हुआ जैसे पेड़ खजूर, पंछी को न छाया मिले, पथिक को फल लागे अति दूर-यह कहावत अधिकतर बड़े लोगों पर लागू होती है। ऐसे लोगों को बड़ा मानना ही एक तरह से गलत है। बड़ा आदमी तो वह है जो लोकहित में अपनी शक्ति का उपयोग करता है न कि जनविरोधी काम करके अपने अहंकार की संतुष्टि! अतः धल, उच्च पद या बाहूबल होने पर छोटे और कमजोर आदमी को संरक्षण देना चाहिये ताकि समाज को एक नई दिशा मिल सके।
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संकलक एवं संपादक-दीपक राज कुकरेजा  'भारतदीप',Gwalior
Editor and writer-Deepak Raj Kukreja 'Bharatdeep'
http://deepkraj.blogspot.com

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