पतंजलि योग सूत्र न केवल योगासन तथा प्राणायाम की क्रियाओं का ही वर्णन करता है वरन् इस जीवन को कैसे समझा जाये या फिर अपने संपर्क में आने वाले व्यक्तियों और वस्तुओं के व्यवहार पर किस तरह निर्णय करें इसका सूत्र भी बताता है। हालांकि हम वह सब करते हैं जो बताया गया है पर अपनी क्रियाओं की शब्द संज्ञा का ज्ञान नहीं होता इसलिये वैचारिक योग नहीं कर पाते। इसलिये यह जरूरी है कि महर्षि पतंजलि के पूरे योग सूत्रों का अध्ययन किया जाये।
प्रत्यक्षानुमानागमाः प्रमाणानि।।
हिन्दी में भावार्थ-प्रत्यक्ष, अनुमान और आगम ये तीन प्रमाण हैं।
प्रत्यक्षानुमानागमाः प्रमाणानि।।
हिन्दी में भावार्थ-प्रत्यक्ष, अनुमान और आगम ये तीन प्रमाण हैं।
वर्तमान संदर्भ में संपादकीय-हमारे जीवन में अनेक बार ऐसे अवसर आते हैं जब किसी कार्य या व्यक्ति को लेकर संशय होता है तथा अनेक बार हम किसी विषय पर विचार करते हुए निर्णायक स्थिति में नहीं पहुंच पाते। दरअसल सोचने का भी एक तरीका होता है। हम अपने कर्म तथा परिणामों में इतना लिप्त होते हैं कि हमें अपने ही द्वारा की जा रही क्रियाओं का ध्यान नहीं रहता। कल्पना करिये हमने किताब अल्मारी से निकालने का प्रयास किया। किताब निकालना एक कर्म है और हम उसे पढ़ना चाहते है यानि कर्ता है। मगर वहां से निकालने का जो प्रयास किया उसे क्रिया कहा जाता है। आप पूछेंगे कि इसमें खास बात क्या है? दरअसल हम जब हाथ अल्मारी की तरफ बढ़ा रहे हैं तो पहले उससे खोलना है, फिर वहां से किताब निकालते हुए इस बात का ध्यान रखना है कि दूसरी किताब वहां से गिर न जाये तथा जो किताब हमने निकली है वह किताब हमारे हाथ से फटे नहीं ताकि उसे हम सुरक्षित अल्मरी में रख सकें। ऐसा तभी हो सकता है जब हमें अपनी क्रियाओं पर ध्यान देने की आदत हो। वरना हम किताब निकालते हुए कहीं दूसरी जगह ध्यान दे रहे हैं तो पता लगा कि किताबा जमीन पर गिर कर फट गयी या फिर दूसरी किताब हाथ में आ गयी। दरअसल यहां बात ध्यान की ही हो रही है जिसका हमारे जीवन में बहुत महत्व है।
जब हम संशयों में होते हैं तब हम निर्णय करने वाले कर्ता है और जिस व्यक्ति या वस्तु पर निर्णय करना है वह एक लक्ष्य है। जब हम किसी वस्तु या व्यक्ति को प्रत्यक्ष देख रहे हैं तो उसके अच्छे या बुरे का निर्णय तुरंत ले सकते हैं। पर यदि कोई वस्तु या व्यक्ति प्रत्यक्ष है पर उसकी क्रिया तथा कर्म की प्रमाणिकता नहीं है तो उस पर अनुमान किया जा सकता है। ऐसे में वस्तु या व्यक्ति का व्यवहार देखकर उसके बारे में निर्णय किया जा सकता है। इसके लिये जरूरी है कि सामने जो प्रत्यक्ष दिख रहा है उसकी क्रियाओं और कर्मों कास विश्लेषण करने के लिये हम अपने ज्ञान चक्षु खोलें और वस्तु या व्यक्ति के व्यवहार को देखकर अनुमान करें। जब हम प्रत्यक्ष कि कियाओं को समझकर निर्णय करते हैं तो वह एक प्रमाण बन जाता है।
उसी तरह कुछ विषयों पर हम निर्णय नहीं ले पाते तो उसके लिये पुस्तकों आदि में पढ़कर निर्णय लेना चाहिये। इसे आगम कहा जाता है। जैसे हम आत्मा को न देख पाते हैं न अनुमान कर पाते हैं तो इसके लिये हमें प्राचीन धर्म ग्रंथों की बातों पर यकीन करना पड़ेगा। इस तरह प्रमाणों की पक्रिया को समझेंगे तो हमें अपने निर्णयों में कठिनाई नहीं आयेगी।
संकलक, लेखक एवं संपादक-दीपक भारतदीप,Gwaliorhttp://deepkraj.blogspot.com
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