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Wednesday, June 23, 2010

मनुस्मृति-प्राणायाम करने से पाप तथा विकार नष्ट होते हैं (pranayam anivarya-hindu dharma sandesh)

प्राणायमाः ब्राहम्ण त्रयोऽपि विधिवत्कृताः।
व्याहृति प्रणवैर्युक्ताः विज्ञेयं परमं तपः।।
हिन्दी में भावार्थ-
किसी साधक द्वारा ओऽम तथा व्याहृति के साथ विधि के अनुसार किए गए तीन प्राणायामों को भी उसका तप ही मानना चाहिए।
दह्यान्ते ध्यायमानानां धालूनां हि यथा भलाः।
तथेन्द्रियाणां दह्यान्ते दोषाः प्राणस्य निग्राहत्।।
हिन्दी में भावार्थ-
अग्नि में सोना चादी, तथा अन्य धातुऐं डालने से जिस प्रकार उनकी अशुद्धता दूर होती है उसी प्राणायाम करने से इंद्रियों के सारे पाप तथा विकार नष्ट होते हैं।
वर्तमान संदर्भ में संपादकीय व्याख्या-विश्व में आर्थिक उदारीकरण तथा औद्योगिकीरण के कारण प्राकृतिक पर्यावरण बिगड़ने के कारण मनुष्य की मनस्थिति भी बिगड़ी है। एक सर्वेक्षण के अनुसार देश में मनोरोगियों की संख्या 40 प्रतिशत से अधिक है। कई लोगों को तो यह आभास ही नहीं है कि वह मनोरोगी है। हममें से भी अनेक लोगों को दूसरे के मनोरोगी होने का अहसास नहीं होता क्योंकि स्वयं हमें अपने बारे में ही इसका ज्ञान नहीं है। इसके अलावा कंप्यूटर, मोबाईल तथा पेट्रोल चालित वाहनों के उपयोग से हमारे शरीर के स्वास्थ्य पर जो बुरा असर पड़ने से दिमागी संतुलन बिगड़ता है यह तो सभी जानते हैं। इधर हम यह भी देख सकते हैं कि चिकित्सालयों में मरीजों की भीड़ लगी रहती है। कहने का अभिप्राय यह है कि आधुनिक साधनों की उपलब्धता ने रोग बढ़ाये हैं पर उसका इलाज हमारे पास नहीं है।
इधर हम यह भी देख सकते हैं कि विश्व में भारतीय योग साधना का प्रचार बढ़ रहा है। इसका कारण यह है कि योगासन तथा प्राणायाम से शरीर के विकार निकल जाते हैं। सच बात तो यह है कि प्राणायाम के मुकाबले इस धरती पर किसी भी रोग का कोई इलाज नहीं है। इसे हम यूं भी कह सकते हैं कि प्राणायाम करने पर यह आभास हो जाता है कि इस धरती पर तो किसी रोग की कोई दवा ही नहीं है क्योंकि प्राणायाम करने से जो तन और मन में स्फूर्ति आती है उसका अभ्यास करने पर ही पता चलता है। अतः तीक्ष्ण बुद्धि तथा शारीरिक बल बनाये रखने के लिये प्राणायाम करना एक अनिवार्य आवश्यकता है। कम से कम आज विषैले वातावरण का सामना करने के लिये इससे बेहतर और कोई साधन नज़र नहीं आता।
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संकलक लेखक  एवं संपादक-दीपक भारतदीप
http://teradipak.blogspot.com

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