मनु महाराज के अनुसार
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अति वादांस्तितिक्षेत नावमन्येत कञ्चन्
न चेमं देहमाश्रित्य वैरं कुर्वीत केनचित्।
हिन्दी में भावार्थ-सन्यासी और श्रेष्ठ पुरुषों को दूसरे लोगों द्वारा कहे कटु वचनों को सहन करना चाहिए। कटु शब्द (गाली) का उत्तर वैसे ही शब्द से नहीं दिया जाना चाहिए और न किसी का अपमान करना चाहिए। इस नश्वर शरीर के लिये सन्यासी और श्रेष्ठ पुरुष को किसी से शत्रुता नहीं करना चाहिए।
न चेमं देहमाश्रित्य वैरं कुर्वीत केनचित्।
हिन्दी में भावार्थ-सन्यासी और श्रेष्ठ पुरुषों को दूसरे लोगों द्वारा कहे कटु वचनों को सहन करना चाहिए। कटु शब्द (गाली) का उत्तर वैसे ही शब्द से नहीं दिया जाना चाहिए और न किसी का अपमान करना चाहिए। इस नश्वर शरीर के लिये सन्यासी और श्रेष्ठ पुरुष को किसी से शत्रुता नहीं करना चाहिए।
क्रुद्धयन्तं न प्रतिक्रुध्येदाक्रृष्टः कुशलं वदेत्
साप्तद्वाराऽवकीर्णां च न वाचमनृतां वदेत्।।
साप्तद्वाराऽवकीर्णां च न वाचमनृतां वदेत्।।
हिन्दी में भावार्थ - सन्यासी एवं श्रेष्ठ पुरुषों को कभी भी क्रोध करने वाले के प्रत्युत्तर में क्रोध का भाव व्यक्त नहीं करना चाहिए। अपने निंदक के प्रति भी सद्भाव रखना चाहिए। अपनी देह के सातों द्वारों -पांचों ज्ञानेंद्रियों नाक, कान, आंख, हाथ वाणी और विचार, मन तथा बुद्धि-से सद्व्यवहार करते हुए कभी भी झूठ नहीं बोलना चाहिए।
वर्तमान सन्दर्भ में संपादकीय व्याख्या-सामान्य मनुष्य में सहिष्णुता और ज्ञान का अभाव होता है जबकि ज्ञानी लोग शांत और सत्य पथ पर दृढ़ता पूर्वक चलते हैं। फिर आजकल खान पान और रहन सहन की वजह से समाज में क्रोध, निराशा तथा हिंसका की भावना बढ़ रही है। श्रीमद्भागवत गीता के अनुसार गुण ही गुणों को बरतते हैं। इस वैज्ञानिक सिद्धांत को ध्यान में रखें तो आजकल दवाईयों से उपजाये गये अन्न तथा सब्जियों का सेवन हर आदमी कर रहा है जिनसे शरीर के रक्त में विषैले तत्वों का बहना स्वाभाविक है। इन्हीं विषैले तत्वों का प्रभाव मनुष्य के मन, वचन, कर्म था वाणी पर पड़े बिना नहीं रह सकता जो अंततः व्यवहार में प्रकट होते हैं। इसलिये जरा जरा सी बात पर उत्तेजित और निराश होने वाले लोगों को देखकर ज्ञानी विचलित नहीं होते क्योंकि वह जानते हैं कि मनुष्य तो गुणों के अधीन है और जिन तत्वों से वह संचालित हैं वह विषैले हैं। तत्वज्ञानी इसलिये किसी की प्रशंसा से प्रसन्न होकर नाचते नहीं है तो गालियां देने पर भी अपने अंदर क्रोध को स्थान नहीं देते। अगर कोई एक गाली देगा और उसके प्रत्तयुतर में दूसरा भी गाली देगा मगर फिर पहले वाला फिर गाली देगा। इस तरह अगर दोनों अज्ञानी हैं तो गालियां का समंदर बन जायेगा पर अगर एक ज्ञानी है तो वह चुपचाप गाली देने से वाले दूर हो जायेगा। यही स्थिति क्रोध की है। समय के अनुसार अच्छा और बुरा समय आता है और भले और लोग भी मिलते हैं। ज्ञानी लोग दूसरे का स्वभाव देखकर व्यवहार करते हैं जबकि अज्ञानी अपने स्वभाव के अनुसार दूसरे का चाल चरित्र देखना चाहते हैं। ऐसा न होने पर उनके अंदर क्रोध की उत्पति होती है जो कालांतर में मनुष्य देह को जलाता है।
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संकलक, लेखक एवं संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
http://anant-shabd.blogspot.com
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