फलेन्धनकुसुमस्तयमधैर्य च मलावहम्।।
हिंदी में भावार्थ-कोई भी मनुष्य कीड़े मकोड़ों तथा पक्षियों की हत्या कर , मदिरा के साथ मांस का भक्षण कर, ईंधन व फूलों को चुराकर तथा जीवन में धैर्य न रखकर पतित हो जाता है।
ब्राह्म्णस्य रुजकृत्वा घ्रातिरघ्रेयमद्ययोः।
जैह्मयं च मैथुनं पुंसिजातिभ्रंशकरं स्मृतम।।
हिंदी में भावार्थ-डंडे से पीटकर किसी पीड़ा देना, मदिरादि दुर्गंधित पदार्थों को सूंघना, कुटिलता करना तथा पुरुष से मैथुन करना जैसे पाप मनुष्य जाति के लिये भयंकर हैं।
वर्तमान संदर्भ में संपादकीय व्याख्या-मनु स्मृति का अध्ययन करने से ऐसा लगता है कि उनके युग में जिन कृत्यों और चीजों को पाप कहा जाता था वह अब आधुनिक सभ्यता का प्रतीक बन गये हैं। मदिरा के साथ मांस के सेवन की प्रवृत्ति बढ़ती जा रही है। इतना ही नहीं समलैंगिकता के नाम पर आज की नयी पीढ़ी को इस तरह गुमराह किया जा रहा है जैसे कि यह कोई नया फैशन हो। देहाभिमान मनुष्य की स्वाभाविक प्रवृत्ति है और यही उसे अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति की वजह से दिमागी रूप से बंधक बना देती है। स्वतंत्रता के नाम पर वह एक उपभोक्ता बनकर रह जाता है। मगर उसका सबसे बड़ा भयंकर रूप आजकल समलैंगिकता के लिये आजादी के अभियान के रूप में दिख रहा है जैसे कि यह कोई एसा काम हो जो महान आनंद देने वाला है। सभी जानते हैं कि दैहिक आवश्यकताओं की पूर्ति की एक सीमा है। एक समय के बाद भौतिकता से आदमी का मन ऊबने लगता है और ऐसे में उसे अध्यात्मिक शांति की आवश्यकता होती है पर उसे कोई समझ नहीं पाता। यही कारण है कि समाज में लोगों का मानसिक संताप बढ़ रहा है और उसके कारण अनेक प्रकार की नयी बीमारियां जन्म ले रही हैं।
हमारे यहां शादी को एक संस्कार कहा जाता है। इसमें दिये जाने वाले भोजों के अवसर पर मदिरा और मांस का सेवन करने की किसी परंपरा की चर्चा हमारे इतिहास में नहीं है पर आज उसे एक फैशन मानकर अपनाया जा रहा है। जहां हमारी संस्कृति की बात आती है तो हम अपने परिवारिक परंपराओं और संस्कारों का उदाहरण देते हैं पर यह केवल उपरी आवरण है जो दुनियां को दिखा रहे हैं पर सच यह है कि आधुनिकता के नाम पर कालिख उन पर हमने स्वयं ही पोती है।
संकलक एवं संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
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