मद का माता जो फिरै, सौ मतवाला काहि।
संत कबीरदास का कहना है कि जो भक्त परमात्मा का नाम लेता है वह कभी मद में नहीं आता। वह तो भगवान की भक्ति में मतवाला रहकर हर चीज से अंजान हो जाता है। जो मद में चूर है वह भला कहां मतवाला हो सकता है।
राता माता नाम का पीया पे्रम अघाय।
मतवाला दीदार का, मांगे मुक्ति बलाय।।
संत कबीरदास जी का कहना है कि जो भक्त परमात्मा के नाम का अनुरागी है वह उसका रस पीकर तृप्त होता है। उसमें तो केवल भगवान के दर्शन का प्यास होती है, वह मोक्ष प्राप्त करने का विचार भी नहीं करता।
वर्तमान संदर्भ में संपादकीय व्याख्या-कभी कभी तो यह लगता है कि कुछ लोग धर्म का ढोंग करते हैं। वह दूसरों पर प्रभाव जमाने के लिये भक्ति करते हैं। उनके जुबान पर भगवान का नाम आता है और वहीं से बाहर चला जाता है। उनके हृदय में तो केवल माया का वास होता है।
जिनमें भगवान के प्रति सच्ची श्रद्धा होती है वह चुपचाप घर में रहकर या मंदिर में जाकर उसका नाम लेते हुए पूजा या ध्यान करते हैं। अपने यहां हर शहर और मोहल्ले में मंदिर होते हैं जहां करोड़ों लोग चुपचाप जाकर अपनी श्रद्धा के अनुसार परमात्मा का नाम लेते हैं पर कुछ लोग ऐसे हैं जो दिन या वार के हिसाब से तमाम तरह के आयोजन कर यह दिखाते हैं कि वह भगवान के भक्त हैं। भगवान के नाम पर आयोजन करने के लिये वह चंदा लेते हैं। कहीं कहीं तो ऐसे लोग मंदिरों के निर्माण के लिये पैसा भी वसूल करते हैं। सरकारी जमीन पर कब्जा कर धार्मिक स्थान बनाने की परंपरा चल पड़ी है। इसमें सभी धर्मों के लोग शामिल हैं। ऐसे लोगों का भगवान की भक्ति का भाव नहीं होता बल्कि इस तरह वह नाम और धन का अपने लिये संग्रह करते हैं। जिनका भगवान के प्रति अगाध विश्वास है वह चुपचाप रहते हैं। किसी को दिखाने का न तो उनमें मोह होता है न ही विचार आता है। वह तो मतवाले होते हैं और जो दिखावे मेें यकीन करते हैं उनको मद आ जाता है।
संकलक एवं संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
http://deepkraj.blogspot.com
-------------------------
यह पाठ मूल रूप से इस ब्लाग‘शब्दलेख सारथी’ पर लिखा गया है। अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की शब्द लेख पत्रिका
2.दीपक भारतदीप की अंतर्जाल पत्रिका
3.दीपक भारतदीप का चिंतन
No comments:
Post a Comment