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Thursday, October 22, 2009

कौटिल्य का अर्थशास्त्र-बुरी आदतों वाले पर कोई भी हमला कर सकता है (buri adton se khatra-hindu sandesh)


प्रावेण सन्तो व्यसने रिपूणां यातव्यमित्येव सभादिशंति।
तत्रैव पक्षी व्यसने हि नित्यं क्षमस्तुन्नभ्युदितोऽभियायात्।
                हिंदी में भावार्थ-
अधिकतर महानतम विचारक व्यसनों से युक्त व्यक्ति पर आक्रमण करने का सुझाव देते हैं और जिसके साथी भी व्यसनी हों अर्थात उसका पूरा पक्ष ही व्यसनी हो उस पर तो हमला कर ही देना चाहिए।


नानाप्रकारैव्र्यसनेर्विमुक्तः शक्तिवेणाप्रतिमेन युक्तः। 
परं दुरन्तव्यसनोपपन्नं याग्रान्नरन्द्रो विजयाभिकांक्षी।।
                   हिंदी में भावार्थ-विभिन्न प्रकार के व्यसनों से रहित महाप्रभावशाली तीन शक्तियों से युक्त जीतने की इच्छा करने वाला राज प्रमुख व्यसनों से युक्त शत्रु पर आक्रमण की योजना बनाये।

                        वर्तमान संदर्भ में संपादकीय व्याख्या-इस संदेश को हम अलग तरीके से भी समझ सकते हैं। अब राजा तो रहे नहीं और लोकतात्रिक सभ्यता में हर व्यक्ति अपने घर का राजा है अतः उसे अपने परिवार और अपनी रक्षा के लिये अनेक अवसर पर रणनीति बनानी पड़ती है। ऐसे में दूसरे व्यसनी पर आक्रमण की बात सोचने की बजाय इस बात पर ध्यान करना चाहिये कि अपने अंदर व्यसन न हों ताकि कोई दूसरा हमें और परिवार को परेशान करने के लिये आक्रमण न कर सके। इस समय हमारे देश में अधिकतर लोगोंआत्मसंयम का अभाव है जो कि इन्हीं व्यसनों का परिणाम है। शराब, जुआ सट्टे जैसे व्यसनों ने चहुं ओर से घेर रखा है और इससे जुड़े व्यवसायों में खूब कमाई है। सच तो यह है कि जिन व्यवसायों में कमाई है वह सभी व्यसनों से जुड़े हैं। लोगों के अंदर मनोरंजन के नाम पर ऐसे व्यसन पेश किये जा रहे हैं जिससे समाज विकृत हो रहा है। यही कारण है कि हमारे देश को बाहर से चुनौती मिल रही है तो अंदर असामाजिक प्रकृत्ति के लोग अपना प्रभुत्व कायम कर लोगों को आतंकित किये रहते हैं। मनोरंजन के नाम पर शराब, खेल, और फिल्मों के व्यसनों ने लोगों को कायर बना दिया है और साथ में उनकी चिंतन क्षमता भी लुप्त हो गयी है। यही कारण है कि जब चार लोग की बैठक जमने पर देश के सामने आ रही चुनौतियों की चर्चा तो है पर उसके हल का कोई उपाय उनको नहीं सूझता। सभी लोग निराशाजनक बातें करते हैं।
            व्यक्तिगत रूप से देश की चिंता करने के साथ ही अपनी स्थिति पर भी विचार करना चाहिए। जितना हो सके उतना व्यसनों से बचें वरना धन, पद और बाहुबल से सुसज्ज्ति असामाजिक तत्व-जो व्यसनों के कारण स्वयं ही डरपोक होते हैं उन उनका डर क्रूरता पैदा करता है- आपको या परिवार को तंग कर सकते हैं। एक बात याद रखें अगर आप अपने चरित्र पर दृढ़ रहते हुए व्यसनों से परे हैं तो आपकी रक्षा स्वतः होगी। व्यसनी होने पर हर कोई आपको एक आसान लक्ष्य (साफ्ट टारगेट soft target ) समझने लगता है। यह बात ध्यान रखते हुए अपने आपको व्यसनों से दूर रखें तो अनेक प्रकार के खतरे स्वत: दूर हो जायेंगे।

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संकलक एवं संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
http://rajlekh.blogspot.com

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