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Wednesday, September 30, 2009

चाणक्य नीति-डसें नहीं फन तो फैलायें (chankya niti-fun)

निर्विषेणाऽपि सर्पेण कत्र्तव्या महती फणा।
विषमस्तु न चाष्यस्तु घटाटोपो भयंकरः।।
हिंदी में भावार्थ-
भले ही अपने पास विष न हो पर विषहीन सर्प को फिर भी फन फैलाने का आडंबर करना चाहिये। उसके बचाव के लिये यह जरूरी होता है।
प्रातद्र्यूतप्रसंगेन मध्याह्ये स्त्रीप्रसंगतः।
रात्रौ चैर्यप्रसंगेन कालो गच्छत्यधीमातम्।।
हिंदी में भावार्थ-
मूर्ख लोगों का समय प्रातःकाल जुआ, दोपहर प्रेम प्रसंग और रात्रि चोरी करने में व्यतीत होता है।
वर्तमान संदर्भ में संपादकीय व्याख्या-मनुष्य को अपने हृदय में दूसरों के प्रति स्वच्छता, स्नेह और दया का भाव रखना चाहिये। जहां तक हो सके दूसरे का भला करें पर यह भी आवश्यक है कि अपनी रक्षा के लिये सतर्कता बरतें। इस संसार में मनुष्य में ही देवता और राक्षस बैठा है। पता नहीं कब किस मनुष्य में राक्षसत्व का भाव पैदा हो इसलिये सभी लोगों से सतर्कता आवश्यक है। वैसे कुछ लोगों में तो हमेशा ही दुष्टता का भाव भरा होता है। ऐसे लोग जिसे कमजोर या असहाय समझते हैं उससे परेशान करने लगते हैं। हालांकि उनके द्वारा संकट पैदा करने पर लोगों पर प्रतिकार भी कर सकते हैं पर वह हमला ही न करें इसलिये अपनी शक्ति का प्रदर्शन समय आने पर करना पहले ही चाहिए। इस प्रदर्शन से दुष्ट हम पर हमला करने का दुस्साहस ही न करे। स्वयं किसी को हानि पहुंचाने का विचार करना भी दुष्टता है पर बाह्य विरोधी से निपटने के लिये अपने पास शक्ति का संचय अवश्य करते रहना चाहिये। इतना ही नहीं कोई अन्य आक्रमण न करे ताकि शक्ति का व्यर्थ उपयोग करने से बचें इस उद्देश्य से समय समय पर उसका प्रदर्शन भी करना चाहिये। जरूरत पड़े तो गुस्सा भी दिखाना चाहिए ताकि दुष्ट लोग सहमें रहें। इस बात का ध्यान रहे कि हमारे व्यवहार या गुस्से से किसी सज्जन का दिल न दुखे।
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