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Saturday, August 22, 2009

श्री गुरु ग्रंथ साहिबः दूसरे का रक्त चूसने वाले का हृदय कभी शुद्ध नहीं होता (shri guru granth sahib in hindi)

खावहि खरचाहि रलि मिलि भाई।
तोटि न आवै वधदो जाई।।
हिंदी में भावार्थ-
गुरु ग्रंथ साहिब की पवित्र वाणी के अनुसार आपस में मिलजुलकर खाना और खर्च करना चाहिये तो कोई कभी अभाव नहीं आता बल्कि धन में बढ़ोतरी होती है।
‘जो रतु पीवहि माणसा तिन किउ निरमलु चीतु।‘
हिंदी में भावार्थ-
गुरु ग्रंथ साहिब की पवित्र वाणी के अनुसार जो मनुष्य दूसरे का खून चूसता है उसका हृदय कभी पवित्र नहीं हो सकता।
वर्तमान संदर्भ में संपादकीय-भगवान श्री गुरुनानक जी ने भारतीय अध्यात्मिक ज्ञान को एक नयी पहचान दी। उन्होंने भारतीय समाज में व्याप्त अंधविश्वासों और कुरीतियों का हमेशा विरोध किया। सच बात तो यह है कि मनुष्य द्वारा मनुष्य के शोषण की जो भयानक हमारे समाज में व्याप्त है उसी कारण ही देश के सदियों तक गुलामी झेलनी पड़ी। कहने को तो देश आजाद हो गया है पर मानसिक गुलामी अभी भी जारी है। इसका कारण यह है कि अहंकार और धन का लोभ हमारे देश के लोगों में इस कद्र है कि सभी एक दूसरे से आगे निकलना चाहते हैं। उद्देश्य यही है कि किसी तरह एक दूसरे को नीचा दिखाया जाये। सहकारिता की भावना का सर्वथा अभाव है। संयुक्त परिवार की प्रवृत्ति लुप्त हो जाने से अधिकतर लोगों का जीवन एकाकी हो गया है। मिलजुलकर रहने का नारा सभी देते हैं पर रहना कोई नहीं चाहता क्योंकि परिवार, समाज और समूह का नेता बनने की ख्वाहिश ऐसा करने नहीं देती। नतीजा यह है कि समाज में वैमनस्य बढ़ रहा है और अमीर गरीब के बीच बढ़ती खायी खतरनाक रूप लेती जा रही है।
शारीरिक श्रम करने वालों को एक पशु की तरह देखने वाला आज का सभ्य समाज नहीं जानता कि गरीबों और मजदूरों की वजह से उनका अस्तित्व बना हुआ है। कितनी विचित्र बात है कि रेहड़ी वाले से पांच रुपये का सामान खरीदने पर भी लोग उससे मोलभाव करते हैं जबकि बड़ी दुकान पर जाकर उनकी आवाज बंद हो जाती है जबकि वहां उससे अधिक पैसे देने पड़ते हैं।
अपने बैंक खातों में रोकड़ शेष बढ़ाने की होड़ ने आदमी को धर्म कर्म और दान पुण्य से दूर कर दिया है। पेट तो दो रोटी खाता है पर धन का भंडार भरने की भूख सभी की बढ़ी हुई है। अमीरों की देखादेखी मध्यम और गरीब लोग भी अमीर बनने का संक्षिप्त मार्ग ढूंढते हैं जो कि अंततः उनको अपराध की तरफ ले जाता है। इसके लिये जिम्मेदारी अमीर वर्ग ही है जो दिखावे के लिये धर्म कर्म बहुत करता है पर जहां गरीब और मजदूर के साथ न्याय करने की बात आ जाये तो उसे बस अपना व्यापारिक धर्म ही याद रह जाता है।
अगर समाज में शांति, एकता और सहृदयता की भावना का पुनर्निमाण करना है तो उसके लिये आवश्यक है कि गरीबों और मजदूरों के कल्याण का विचार किया जाये। वह हमारे देश और समाज का एक अभिन्न अंग हैं यह कभी नहीं भूलना चाहिये।
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संकलक एवं संपादक-दीपक भारतदीप

1 comment:

Rakesh Singh - राकेश सिंह said...

प्रेरणादाई |

बहुत बहुत धन्यावाद |

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