बांटनवारे को लगे, ज्यों मेंहदी के रंग।।
कविवर रहीम कहते हैं कि जैसे मेंहदी बांटने वाले को उसका रंग लग जाता है वैसे ही वे मनुष्य धन्य हैं जो परोपकार में लीन हैं।
रहिमन तब लगि ठहरिए, दान मान सनमान।
घटत मान देखिय जबहिं, तुरतहि करिय पयान।
कविवर रहीम कहते हैं कि किसी स्थान पर तब तक ही ठहरिये जब तक वहां मान सम्मान होता है। जब उसमें कमी देखें वहां से प्रस्थान कर जायें।
वर्तमान संदर्भ में संपादकीय व्याख्या-इस धरती पर विचरने वाले सभी प्रकार के जीव अपना भोजन जुटाते हैं। परमात्मा ने पशुओं को बेजुबान पर उपयोगी बनाया है ताकि मनुष्य अपने स्वार्थ की पूर्ति के लिये उनका भरण पोषण करता रहे ।
सभी प्रकार के जीवों में नरमादा होते हैं और करीब करीब माता पिता ही अपने बच्चों का भरण पोषण करते हैं। ऐसे में कोई मनुष्य ही अगर अपने परिवार का भरण पोषण कर अपने आपको सिंह समझता है तो यह उसका भ्रम है। उसकी सही पहचान यह है कि वह अपने लिये कर्म करता हुआ दूसरे का भी भला करे। इसके विपरीत लोग अपनी उपलब्धियां बखान करते हुए उसमें काल्पनिक रूप से अपने परोपकारी कर्म भी सुनाते हैं-इससे यह तो सिद्ध होता है कि हर आदमी जानता है कि बिना परमार्थ के उसका कभी कहीं सम्मान नहीं हो सकता इसलिये परमार्थ और दान के किस्से सुनाकर अपने आपको महात्मा साबित करने का प्रयास करते हैं। इसके अलावा कुछ लोग तो ऐसे हैं जो करते थोड़ा दान है पर बताते अधिक हैं। मगर परमात्मा भी उसी व्यक्ति की भक्ति और साधना से प्रसन्न होते हैं जो दूसरों का भला करते हैं।
सज्जन और भक्त आदमी को वहीं टिकना चाहिये जहां न केवल उसका सम्मान होता हो बल्कि वहां के लोग भी दान आदि देने वाले होना चाहिये। स्वार्थी लोगों के बीच रहकर उनसे किसी प्रकार की आशा करना व्यर्थ है। जहां मान सम्मान कम हो और दान आदि भी न किया जाता हो वहां रहने का तो विचार भी नहीं करना चाहिए।
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2 comments:
सुन्दर विचार प्रेषित किए हैं।आभार।
bade acche dohe hain...
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