न कल्पमपि कष्टेन लोक़द्वयविरोधिना।।
हिदी में भावार्थ- अगर अच्छे काम करते हुए मनुष्य एक मुहूर्त भी जीवित रहे तो वह उत्तम है पर दूसरे के संकट खड़ा करने के साथ अनावश्यक विरोध करने वाला लंबे समय तक जीवित रहे तो भी अच्छा नहीं।
गते शोको न कत्र्तव्यो भविष्यं नैव चिन्तयेत्।
वर्तमानेन कालेन प्रवर्तन्ते विचक्षणाः।।
हिंदी में भावार्थ- भूतकाल में किये गये कार्य का शोक नहीं करते हुए भविष्य की चिंता करना चाहिये। विद्वान लोग वर्तमान के अनुसार अपने कार्य को योजनाबद्ध ढंग से करते हुए भविष्य संवारते हैं।
वर्तमान संदर्भ में संपादकीय व्याख्या-मनुष्यों में कुछ देवत्व और राक्षसत्व दोनों भाव रहते हैं। मुख्य बात यह है कि मनुष्य चलना किस राह चाहते हैं और इसी आधार पर उनके द्वारा व्यवहार किया जाता है। जिन लोगों के मस्तिष्क में लोभ, लालच और अहंकार की प्रवृत्ति की प्रधानता है वह सिवाय अपने स्वार्थ की पूर्ति के अलावा कुछ अन्य नहीं देखते। धीरे धीरे वह इतने आत्मकेंद्रित हो जाते हैं कि वह किसी दूसरे का काम बनता देख उनके हृदय ईष्र्या और द्वेष के भाव पैदा होने लगते हैं। इतना ही नहीं किसी दूसरे का काम बिगाड़ने में भी उनको मजा आता है। ऐसे लोगों की जिंदगी पशु के समान हो जाती है और वह समाज के लिये कष्टदायी होते हैं। इसके विपरीत कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो पाखंड से परे होकर शांति से परोपकार का कार्य करते हुए प्रचार से दूर रहते हैं। ऐसे लोगों को पूरा समाज आदर भी करता है।
जो बीत गया सो बीत गया। अपने हाथ से कोई अच्छा काम हुआ हो या कोई गलती हो गयी हो तो उसकी चिंता को छोड़ते हुए भविष्य की योजना बनाना चाहिए। अपने वर्तमान में ही ऐसे कार्य करने की सोचना चाहिये जिससे भूतकाल की गल्तियां स्वतः सुधरने के साथ ही भविष्य में भी लाभ होता है।
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