चोरों कुतिया मिलि गई, पहरा किसका देय।।संत शिरोमणि कबीरदास जी कहते हैं कि हमारी जीभ खट्टा, मीठा और चटपटा सब प्रकार के रसों का स्वाद लेती है ऐसे में उससे यह कैसे आशा की आये कि वह किसी को बुरा कहेगी। यह ऐसा ही है जैसे कि चोरों से कुतिया मिल जाये तो पहरा कौन दे।
खट्टा मीठा देखिके, रसना मेलै नीर।
जब लग मन पाको नहीं, काचो निपट कबीर।।संत शिरोमणि कबीर दास जी कहते हैं कि खट्टा मीठा देखकर जीभ से लार टपकती है। अगर मन वश में नहीं है तो उसे कच्चे कांच का ही समझना चाहिए।
वर्तमान संदर्भ में संपादकीय व्याख्या-खट्टा मीठा और चटपटा स्वाद लेने की आदी हो चुकी जीभ किसी खाद्य पदार्थ के विषैले होने की जांच नहीं करती। इस समय बाजार में अनेक प्रकार के ‘फास्ट फूड’ बिकते हैं जिनके बारे में कहा जाता है कि वह पेट के लिये अत्यंत खतरनाक हैं। इसके अलावा अनेक चटपटी वस्तुऐं बनती हैं जिनमें अनेक प्रकार के खतरनाक रसायन मिले होते हैं। उनका उपयोग सेहत के लिए ठीक नहीं हैै। इसके बावजूद जीभ के स्वाद के लिये लोग उनका उपयोग करते हैं।
आशय यह है कि खाने पीने की वस्तुओं को उपभोग करते समय जीभ के स्वाद की तृप्ति देखते हैं न कि उससे होने वाली हानियों पर। यही कारण है कि आजकल अस्पतालों में बीमार लोगों की भीड़ लगी रहती है। चिकित्सकों को इससे इतनी कमाई होने लगी है कि उनके निजी अस्पताल फाइव स्टार होटलों की तरह चमकने लगे हैं। लोगों ने जीभ के स्वाद की पूर्ति के लिये वस्तुओं के अच्छे और बुरे होने की पहचान खो दी है और ऐसे में यह कैसे आशा की जाये कि वह स्वस्थ जीवन व्यतीत करें।
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संकलक एवं संपादक-दीपक भारतदीप
1 comment:
अति आनन्द दायक !
बहुत बढिया समझ और व्याख्या आज के संदर्भ मे . लगता है कि मैं कहीं अपनी ही प्रतिध्वनि तो नहीं सुन रहा ?
आपके लेखों पे ही मंडरा रहा हूं आज .
आधुनिक सन्दर्भों मे निति और नैतिकता तलाशते .
सस्नेह .
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