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Tuesday, April 28, 2009

कौटिल्य का अर्थशास्त्र-अपमान की क्रोधाग्नि में जल रही सेना युद्ध योग्य नहीं होती

अमानितं हिं युध्येत कृतमानार्थसंग्रहम्।
न विमानितम्तर्थ प्रदीप्तक्रोपावकम्।।
हिंदी में भावार्थ-
जिस सेना का अपमान हुआ हो वह सम्मान पाने के लिये युद्ध कर सकती है पर जो अपमान की क्रोधाग्नि में जल रही हो वह युद्ध के योग्य नहीं होती।
परिश्रान्तं हि युध्येत विश्रान्तं सुविधानतः।
दुरार्यार्तहतप्राणं न शस्त्रग्रहणमम्।।
हिंदी में भावार्थ-
बाध्यता हो तो थक गया आदमी भी युद्ध कर सकता है पर विश्राम करने के बाद उसकी क्षमता बढ़ जाती है और वह विधिपूर्वक युद्ध कर सकता है। बहुत लंबी दूरी तय कर आया व्यक्ति तो शस्त्र भी नहीं ग्रहण कर सकता।
वर्तमान संदर्भ में संपादकीय व्याख्या-कौटिल्य का अर्थशास्त्र केवल भूमिपति राजाओं के लिये नहीं लिखा गया बल्कि घर परिवारों और व्यवसायों के राजाओं के लिये भी उसमें सीखने लायक है क्योंकि जहां तक आचरण, व्यवहार और नैतिकता की बात है तो हर प्रकार के स्वामी को आदर्श प्रस्तुत करना चाहिये। यहां राजाओं के लिये जहां यह संदेश है कि वह अपने सैनिकों की मनोदशा को समझें वही स्वामित्व धारण करने वाले सामान्य लोगों को भी यही समझाया जा रहा है कि वह अपने शासितों के प्रति सहानुभूति दिखायें।
कोई अनुचर अपना सम्मान बचाने के लिये स्वामी के कार्य को संपन्न करने का प्रयास कर सकता है अगर वह अपमान के कारण क्रोध में जल रहा है तो यह किसी भी कार्य को सही ढंग से संपन्न नहीं कर सकता। अगर अधिकारी ने अपने अधीनस्थ का अपमान उसे नकारा बताकर किया है तो फिर उसे यह आशा नहीं करना चाहिये कि वह ठीक ढंग से अंजाम देगा। अगर फिर भी उसे कार्य करने के बाध्य किया गया तो वह उसे उल्टा पुल्टा कर सकता है। उसी तरह अगर अधीनस्थ को विश्राम देकर काम करने दें तो वह बेहतर ढंग से उस कार्य को कर सकता है। कार्य पर तत्काल उपस्थित हुए अधीनस्थ को पहले सांस लेने दें फिर उसे काम सौंपे। वैसे देखा जाये तो यह कुशल प्रबंधन का एक तरीका है।
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संकलक एवं संपादक-दीपक भारतदीप

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