बैडालवृत्तिका ज्ञेयो हिंस्त्रः सर्वाभिसंधकः।।
लोगों में अपना प्रभाव जमाने के लिये स्वयं आचरण न करते हुए केवल धर्म की ध्वजा पताका फहराने का नाटक करना, दूसरे का धन को छीनने की इच्छा करना, हिंसक स्वभाव होना तथा दूसरों भड़काकर झगड़ा कराना बैडाल वृत्ति का परिचायक है।
वर्तमान संदर्भ में संपादकीय- पूरी दुनियां में अनेक धर्मों के ध्वजवाहक दिखने को मिल जायेंगे पर उनके धर्मों के आड़ में ही हिंसा की प्रवृत्ति बढ़ रही है। इससे प्रमाणित होता है कि पूरी दुनियां में बैडाल प्रवृत्ति के कथित ज्ञानियों की संख्या बढ़ रही है। मनु स्मृति के अनुसार धर्म के नाम पर ठगी करना भी बैडाल या ठगी की प्रवृत्ति है।
यत्र तत्र सर्वत्र पूरी दुनियां में कथित ज्ञानी विद्वान अपने श्रीमुख से सामान्य लोगों को धर्मोपदेश देते घूम रहे हैं। कहते हैं कि ‘हिंसा मत करो’, परोपकार करो, सादगी से रहो, और ‘सबसे प्रेम करो’। एक तरह से उन लोगों ने नारों को ही उपदेश बना लिया है। अपने नारों को मजबूत करने के लिये वह कुछ मनोरंजक कहानियां सुनाने लगते हैं। कुछ धर्मोपदेश अपने धर्मग्रंथों में वर्णित चमत्कारी घटनाओं का प्रचार कर लोगों को कर्मविमुख करते हैं। उनका बस यही कहना होता है कि ‘बस हाथ उठाकर आसमान में स्थित भगवान से अपने लिये सुख मांगते रहो।’
यह धर्मोदेशक इस तरह अपने लिये भोगविलास की सामग्रियां जुटाते हैं। उनकी वृति केवल भक्त के धन को अपनी जेब में खीचने की होती है। इतना ही नहीं समय पड़ जाये तो यह अपने समुदाय के हिंसक लोगों को प्रश्रय देते हैं। उससे भी बात न बने तो आम लोगों को हिंसा के लिये प्रेरित करते हैं। ऐसे लोगों को पहचान करते हुए उनकी उपेक्षा करना चाहिये।
वैसे हम कहते हैं कि जमाना अब खराब हुआ है पर मनुमहाराज का यह संदेश देखें तो धर्म की ध्वजपताका फहराने वाले ढोंगी उस समय भी थे इसलिये ही तो उन्होंने उनकी चर्चा की ताकि लोग उनसे दूर रहें।
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संकलक एवं संपादक-दीपक भारतदीप
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