भर्तृहरि नीति शतक में कहा गया है
कि
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पुलहृदयैरीशैतज्जगनतं पुरा विधृततमपरैर्दत्तं चान्यैर्विजित्य तृणं यथा।
इह हि भुवनान्यन्यै धीराश्चतुर्दशभुंजते कतिपयपुरस्वाम्ये पुंसां क एष मदज्वर:||
इह हि भुवनान्यन्यै धीराश्चतुर्दशभुंजते कतिपयपुरस्वाम्ये पुंसां क एष मदज्वर:||
हिंदी में भावार्थ-अनेक लोगों ने इस पृथ्वी का उपभोग किया तो कुछ उदार प्रवृति
के लोगों ने इसे जीतकर दूसरों को दान में दे दिया। आज भी कई
शक्तिशाली लोग बड़े भूभाग के स्वामी है पर उनमें अहंकार का भाव तनिक भी नहीं दिखाई
देता परंतु कुछ ऐसे हैं जो कुछ ग्रामों (जमीन के लघु टुकड़े) के स्वामी होने के कारण उसके मद में लिप्त हो जाते
हैं।
वर्तमान संदर्भ में संपादकीय व्याख्या-यह प्रथ्वी करोड़ों वर्षों से अपनी जगह पर स्थित
है। अनेक महापुरुष यहां आये जिन्होंने इसका उपयोग किया। कुछ ने युद्ध में विजय
प्राप्त कर जीती हुई जमीन दूसरों को दान में दी। अनेक धनी मानी लोगों ने बड़े बड़े दान किये और लोगों की सुविधा के
लिये इमारतें बनवायीं। उन्होंने कभी भी अपने धन का अहंकार नहीं दिखाया पर आजकल जिसे थोड़ा भी धन आ
जाता है वह अहंकार में लिप्त हो जाता है। देखा जाये तो इसी अहंकार की प्रवृति ने समाज
में गरीब और अमीर
के बीच एक ऐसा तनाव पैदा किया है जिससे अपराध बढ़ रहे हैं। दरअसल अल्प धनिकों में अपनी गरीबी के कारण क्रोध या
निराशा नहीं आती बल्कि धनिकों की उपेक्षा और क्रूरता उनको विद्रोह के लिये प्रेरित करती
है।
समाज के बुद्धिमान लोगों ने मान लिया है कि समाज का
कल्याण केवल सरकार का जिम्मा है और इसलिये वह धनपतियों को समाज के गरीब,
पिछड़े और असहाय तबके की सहायता के लिये प्रेरित नहीं करते। इसके अलावा जिनके
पास धन शक्ति प्रचुर मात्रा है वह केवल उसके अस्तित्व से संतुष्ट नहीं है बल्कि दूसरे लोग उसकी शक्ति देखकर प्रभावित हों
अथवा उनकी प्रशंसा करें इसके लिये वह उसका
प्रदर्शन करना चाहते हैं। वह धन से विचार, संस्कार, आस्था और धर्म
की शक्ति को कमतर साबित करना चाहते हैं। सादा जीवन और उच्च विचार से परे होकर धनिक लोग-जिनमें
नवधनाढ्य अधिक शामिल हैं-गरीब पर अपनी शक्ति का प्रतिकूल प्रयोग कर उसमें भय उत्पन्न करना
चाहते हैं। परिणामतः गरीब और असहाय में विद्रोह की भावना
बलवती होती है।
आज के सामाजिक तनाव की मुख्य वजह इसी धन का
अहंकारपूर्ण उपयोग ही है। धन के असमान वितरण की खाई चौड़ी हो गयी है इस कारण अमीर गरीब
रिश्तेदार में भी बहुत अंतर है इसके कारण सम्बन्धों भावनात्मक लगाव में कमी होती जाती है। धन की
शक्ति बहुत
है पर सब कुछ नहीं है यह भाव धारण करने वाले ही लोग समाज में सम्मान पाते हैं और जो इससे
परे होकर चलते हैं उनको कभी कभी न कभी विद्रोह का सामना करना पड़ता है।
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यह पाठ मूल रूप से इस ब्लाग ‘शब्दलेख सारथी’ पर लिखा गया है। मेरे अन्य ब्लाग
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संकलक एवं संपादक-दीपक भारतदीप
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