बढ़त बढ़त बढ़ि जात हैं, घटत घटत घटि सीम
कविवर रहीम कहते हैं कि चंद्रमा, सुंदर केश, साहस, जल और सम्मान बढ़ते हुए चरम पर पहुंच जाते हैं पर घटते हुए धीमे हो जाते हैं।
वर्तमान संदर्भ में संपादकीय-इस संसार में कोई भी वस्तु स्थिर नहीं है। जिस तरह चंद्रमा प्रतिदिन उदयकाल के बाद धीरे धीरे प्रकाश का चरम शिखर प्राप्त करता है फिर पुनः अस्ताचल को चला जाता है वैसे ही सुंदर बाल कभी झड़ने लगते हैं, जल घटने लगता है, सम्मान का क्षरण होने लगता है और स्नेह की जगह उपेक्षा का भाव आने लगता है। यह प्रथ्वी पर स्थित हर वस्तु का गुण है। एक तरह से जहां यह संदेश मिलता है कि हर वस्तु का समयानुसार पतन होता है वहीं यह भी प्रेरणा मिलती है कि अभ्यास से अपने ही गुणों को बनाये रखा जा सकता है। अगर बाल सुंदर हैं तो उनकी रक्षा अपने शरीर की देखभाल से की जा सकती है। उसी तरह जल संरक्षण के लिये उसका अपव्यय रोका जाना चाहिये। इसके अलावा अगर हम निंरतर दूसरे लोगों का हित करते रहें तो सम्मान कभी कम नहीं हो सकता। अगर हम निष्काम भाव से अपने छोटों को स्नेह करें तो उसमें कमी नहीं आयेगी और अगर बड़ों का आदर करेंगे तो उनका स्नेह कभी कम नहीं होगा।
कहने का तात्पर्य यह है कि समय के अनुसार हालातों में उतार चढ़ाव आते हैं इसलिये उनकी उपेक्षा कर देना ही मानसिक तनाव से मुक्ति का उपाय है साथ ही अपने गुणों की रक्षा के लिये निंरतर अभ्यास करते रहना चाहिये ताकि लोगों का मान और स्नेह बना रहे।
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यह पाठ मूल रूप से इस ब्लाग ‘शब्दलेख सारथी’ पर लिखा गया है। मेरे अन्य ब्लाग
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संकलक एवं संपादक-दीपक भारतदीप
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