कहैं कबीरा राम-जन, ताको करो न संग
संत कबीरदास जी कहते हैं जो शराब का सेवन और तम्बाकू भंग का उपभोग करते हैं ऐसे लोगों की संगत कभी नहीं करना चाहिये भले ही वह राम का नाम लेने वाले हों।
हुक्का तो सोहै नहीं, हरिदासन के हाथ
कहैं कबीरा हुक्का गहैं, ताको छोड़ो साथ
संत कबीरदास जी कहते हैं कि जो भगवान के भक्त हैं उनके हाथ में हुक्का नहीं सुहाता। जो हुक्का या तुंबाकु का सेवन करते हैं उनका साथ छोड़ देना चाहिये।
वर्तमान संदर्भ में संपादकीय व्याख्या-मनुष्य को भक्ति और ज्ञानार्जन के लिये इसलिये सक्रिय रहना चाहिये क्योंकि उससे मन में शांति रहती है। मनुष्य का मन ही उसे संचालित करता है। अगर यह मन व्यसनों में लगता है तो फिर उसका गुलाम हो जाता है। फिर भी आदमी अपने आपको दिखाने के लिये भक्ति करता है। इससे उसको शांति नहीं मिलती। लोग मंदिर में जाकर मत्था टेकते हैंं और फिर बाहर निकलते ही तंबाकू, भांग और शराब का सेवन करते हैं।
दूसरी बात तो छोडि़ये मूंह में तंबाकू है और भगवान की भक्ति की बात करते हैं। पास खड़े आदमी को शराब की बदबू आ रही है और शराब है कि अपना अध्यात्मिक ज्ञान सुनाये जा रहा है। इस देश में कई जगह ऐसे साधु मिल जायेंगे जो अपने शिष्यों से चिलम भराते हैं और फिर उसके कल्याण के नाम पर मंत्र आदि जपते हैं। यह सब ढोंग इस देश में बहुत होता है।
अध्यात्मिक ज्ञान से आदमी तभी संपन्न हो पाता है जब वह किसी व्यवसन का शिकार नहीं होता। जब मन ज्ञान और भक्ति मेंं रम गया तो फिर उसे कहीं और लगाने की आवश्यकता ही नहीं होती। अगर भक्ति और ज्ञानार्जन में लगे होने केे बावजूद हमारा मन व्यवसनों की तरह आकर्षित हो तो समझ लेना चाहिये कि हमारे अध्यात्मिक प्रयासों मेें कोई कमी है। इसके अलावा जो तंबाकू,भांग और शराब का सेवन करते हैं उनके साथ कभी भी ंसगत नहीं करना चाहिये। आदमी कितना भी प्रयास करे उसे संग का रंग तो लग ही जाता है।
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यह पाठ मूल रूप से इस ब्लाग ‘शब्दलेख सारथी’ पर लिखा गया है। मेरे अन्य ब्लाग
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संकलक एवं संपादक-दीपक भारतदीप
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