समस्त ब्लॉग/पत्रिका का संकलन यहाँ पढ़ें-

पाठकों ने सतत अपनी टिप्पणियों में यह बात लिखी है कि आपके अनेक पत्रिका/ब्लॉग हैं, इसलिए आपका नया पाठ ढूँढने में कठिनाई होती है. उनकी परेशानी को दृष्टिगत रखते हुए इस लेखक द्वारा अपने समस्त ब्लॉग/पत्रिकाओं का एक निजी संग्रहक बनाया गया है हिंद केसरी पत्रिका. अत: नियमित पाठक चाहें तो इस ब्लॉग संग्रहक का पता नोट कर लें. यहाँ नए पाठ वाला ब्लॉग सबसे ऊपर दिखाई देगा. इसके अलावा समस्त ब्लॉग/पत्रिका यहाँ एक साथ दिखाई देंगी.
दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका


हिंदी मित्र पत्रिका

यह ब्लाग/पत्रिका हिंदी मित्र पत्रिका अनेक ब्लाग का संकलक/संग्रहक है। जिन पाठकों को एक साथ अनेक विषयों पर पढ़ने की इच्छा है, वह यहां क्लिक करें। इसके अलावा जिन मित्रों को अपने ब्लाग यहां दिखाने हैं वह अपने ब्लाग यहां जोड़ सकते हैं। लेखक संपादक दीपक भारतदीप, ग्वालियर

Saturday, February 21, 2009

भर्तृहरि शतकः वैराग्य मार्ग पर चलो या पूर्ण विषयी बन जाओ

आवासः क्रियतां गंगे पापहारिणी वारिणि
स्तन,ये तरुपया वा मनोहारिणी हारिणी

हिंदी में भावार्थ- मनुष्य को अपने पापों से बचने के लिये गंगा के किनारे जाकर वैराग्यपूर्ण जीवन व्यतीत करना चाहिये या फिर सुंदर हार पहने नारी के साथ संपर्क रखते हुए गृहस्थ जीवन व्यतीत करना चाहिये।
वर्तमान संपादकीय व्याख्या-अपने जीवन में कभी भी मानसिक अंतद्वंद्व को स्थान नहीं देना चाहिए। अनेक लोगों को लगता है अगर वह विवाह नहीं करते तो सुखी रहते पर फिर भी करते हैं। विवाह करने पर धर की जिम्मेदारी आने से आदमी अनेक बार परेशान हो जाता है और तब उसे वैराग्य पूर्ण जीवन सही लगता है। दूसरी तरफ ऐसे लोग भी है जो गृहस्थ होने पर वैरागी होने का दिखावा करते हैं। जिन लोगों ने पहले वैराग्य लिया वह दूसरे रूप में पुनः विषयों की तरफ लौट आते हैं। भर्तृहरि जी का संदेश यही है कि अगर हमने विषयों को ओढ़ लिया है तो फिर उनमें मन लगाते हुए अपना काम करना चाहिये। अगर वैराग्य लिया है तो फिर विषयों से परे होना चाहिये। मध्य स्थिति में फंसे होन पर केवल कष्ट ही मिल सकता है। अगर हमारे ऊपर घर की जिम्मेदारियां हैं तो उनको निभाने के लिये उसमें मन लगाना ही चाहिये। अगर उनसे बचने का प्रयास करेंगे तो वह भी संभव नहीं है, इसलिये उसमें हृदय लगाकर जूझना चाहिये। अगर जीवन में जिम्मेदारियों से बचना है तो फिर उनके बारे में सोचने से अच्छा है कि वैराग्य पहले ही लें और गृहस्थी न बसायें पर अगर बसा ली है तो उससे भागना संभव नहीं है। कहने का तात्पर्य है कि अगर हमने विषयों को ओढ़ लिया है तो उसमें अपनी बुद्धि के अनुसार चलना चाहिये न कि उनसे बचने का प्रयास करते हुए तनाव को आमंत्रण दें। अगर उनसे बचना है तो पूरी तरह से वैराग्य लेना चाहिये
.........................................

यह पाठ मूल रूप से इस ब्लाग‘दीपक भारतदीप की अंतर्जाल पत्रिका’ पर लिखा गया है। अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की शब्द लेख पत्रिका
2.शब्दलेख सारथि
3.दीपक भारतदीप का चिंतन
संकलक एवं संपादक-दीपक भारतदीप

1 comment:

दिनेशराय द्विवेदी said...

दीपक जी हम तो पूरी तरह वि्षयी हैं और उसी तरह अपनी पत्नी के पानी भरने वाले भी जैसे ब्रह्मा, विष्णु, महेश।

विशिष्ट पत्रिकायें