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Saturday, November 15, 2008

रहीम के दोहे: केवल याचना करने से कोई काम नहीं बनता

रहिमन चाक कुम्हार को, मांगे दिया ना देह
छेद में डंडा डारि कै, चहै नांद लै लेइ


कविवर रहीम कह्ते हैं कि कुम्हार का चाक याचना करने से दीपक नहीं बंना देता। चाक में छेद में डंडा डालकर घुमाने से दीपक तो क्या पूरी नांद (मिट्टी का बडा पात्र) का पात्र बना जाता है।
भावार्थ- आजकल सहजता से कोई काम नही होता। कई बार ऐसे अवसर आते हैं जब हमें कठोर होना पड्ता। हालांकि ऐसा हमेशा नहीं होता और कई बार सह्जता से काम भी होते हैं, पर कुछ लोगों का यह स्वभाव होता है कि वह कठोर होने पर ही आपकी बात
मानते हैं।

रहिमन खोटी आदि की, सो परिनाम लखाय
जैसे दीपक तम भखै, कज्जल वमन कराय


कविवर रहीम कहते हैं कि बुराई होने पर उसका फ़ल अवश्य दिखाई देता है। जैसे दीपक अंधकार को दूर कर देता है, परंतु शीघ्र ही कालिमा उगलने लगता है।
वर्तमान संदर्भ में संपादकीय व्याख्या-अक्सर लोग सोचते हैं कि दूसरे से वस्तुऐं मांग कर अपना काम चलायें। ऐसे लोगों में आत्म सम्मान नहीं होता और जिनमें आत्म सम्मान नहीं है वह मनुष्य नहीं बल्कि पशु समान होता है। अक्सर ऐसे लोग हैं जो अपने काम के लिये वस्तु या धन मांगने में संकोच नहीं करते। उनके पास अपना पैसा होता है पर वह उसको बचाने के चक्कर में दूसरे से वस्तुऐं उधार मांग कर काम चलाते हैं। उद्देश्य यही रहता है कि पैसा बचे। ऐसे कंजूस लोग जिंदगी भर पैसा बचाते हैं पर अंततः वह साथ कुछ भी नहीं ले जाते। कोई आदमी कितना भी बड़ा क्यों न हो जब किसी से कोई चीज मांगता है तो वह छोटा हो जाता है और अगर छोटा हो तो उसे भिखारी समझा जाता है। सच बात तो यह है कि मांगने से कोई बड़ा आदमी नहीं बनता बल्कि दान देने से समाज में सम्मान मिलता है।
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संकलक एवं संपादक-दीपक भारतदीप

1 comment:

seema gupta said...

रहीम के दोहे: केवल याचना करने से कोई काम नहीं बनता
" sach kha, yachnaa ke sath mehnet bhee jruree hai"

Regards

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