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Tuesday, October 21, 2008

संत कबीर संदेशः तंबाकू के सेवन से हृदय में मलिनता उत्पन्न होती है

संत शिरोमणि कबीरदास जी कहते हैं कि
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हुक्का तो सोहै नहीं, हरिदासन के हाथ
कहैं कबीर हुक्का गहै, ताको छोड़ो साथ

इसका आशय यह है कि परमात्मा के सच्चे भक्तों के हाथ में हुक्का शोभा नहीं देता। जो व्यक्ति हुक्का पीते हैं उनका साथ ही छोड़ देना चाहिये।
भौंडी आवै बास मुख, हिरदा होय मलीन
कहैं कबीरा राम जन, मांगि चिलम नहिं लीन


आशय यह है कि जो चिलम आदि का सेवन करते हें उनके मूंह से गंदी बास आती है और उनका हृदय भी मलिन होता है। उनकी संगत न करना चाहिये और न उनसे ऐसी व्यसनों की सामग्री मांगना चाहिये।

वर्तमान संदर्भ में व्याख्या-चाहे कितना भी कोई अपनी भक्ति का दिखावा करे पर अगर वह तंबाकू, सिगरेट और चिलम का सेवन करता है तो उसका विश्वास नहीं करना चाहिये। अब तो लोगों के लिये भक्ति भी एक तरह का फैशन हो गया है। कहीं भी किसी जगह धार्मिक मेले में जाईये वहां तंबाकू के पाउच बिकते मिल जायेंगे। वहां लोग खरीद कर उसका सेवन करते हैं। वह भले ही कहते हों कि वह तो भगवान के भक्त है पर अपने मन को खुश करने के लिये जब उनको तंबाकू वाले व्यसन जैसे सिगरेट या पाउच की जरूरत पड़ती है तो इसका आशय यह है केवल भक्ति से उनको राहत नहीं मिलती। यह उनकी मानसिक कमजोरी का परिचायक है। जो परमात्मा की सच्ची भक्ति करते हैं उनको ऐसी चीजों की आवश्यकता नहीं होती। वह तो भक्ति से ही अपने मन को सदैव प्रसन्न रखते हैं।

श्रीगीता में कहा गया है कि गुण ही गुणों को बरतते हैंं। जो लोग तंबाकू आदि का सेवन करते हैं तो उनके मूंह से बदबू आती है। इसका आशय यह है कि वह बदबू उनके शरीर में बैठी है और मन और मस्तिष्क को प्रभावित कर रही है। ऐसे में विचारों के केंद्र बिंदू मस्तिष्क में अच्छे विचार कैसे आ सकते हैं। क्या हम कहीं किसी गंदी गली से निकलते हैं तो हमारे मूंह में क्रोध या नाराजगी के भाव नहीं आते? फिर जो मस्तिष्क उस गंदी बदबू को झेल रहा है कैसे अच्छे विचार कर सकता है। इसलिये ऐसे लोगों के साथ भी नहीं रहना चहिये क्योंकि वह किसी तरह से सहायक नहीं होते।
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1 comment:

रंजना said...

bahut sahi aur sundar vicharottejak aalekh.

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