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खरी कसौटी राम की, काचा टिकै न कोय
राम कसौटी जे सहै, जीवत मिरतक होय
भगवान श्री राम की भक्ति ही एक कसौटी है जिस पर कोई कच्चा आदमी नहीं टिक सकता। जो भगवान श्रीराम की भक्ति पर कसौटी पर खरा उतरता है वह व्यक्ति इस देह के अहंकार से परे हो जाता है अर्थात जीवन धारण करते हुए भी मृतक समान हो जाता है।
कांच कथीर अधीर नर, ताहि न उपजै प्रेम
कहैं कबीर कसनी सहै, कै हीरा कै हेम
कंकड़ के समान कठोर हृदय वाले व्यक्ति के मन में कभी प्रेम नहीं उपजता है। कसनी तो हीरा या सोना सहता है अर्थात प्रेम की कसौटी पर तो सच्चे भक्त ही ठहर पाते हैं।
वर्तमान संदर्भ में संपादकीय व्याख्या-वैसे तो कबीरदास जी के समय भी इस समाज में पाखंड कम नहीं था पर आज तो भक्ति और आस्था के नाम पर इसका विकृत रूप सामने आता जा रहा है। लोग भगवान का नाम भजनों में ऐसे लेते हैं जैसे कि उनकी उसमें बहुत श्रद्धा है पर हकीकत में केवल सभी भक्ति के नाम पर व्यापार या मनोरंजन करते हैंं। भगवान के नाम पर तमाम तरह के प्रदर्शन का आयोजन करने के लिये भक्तों से चंदा वसूला जाता है। भगवान के नाम पर अनेक आयोजन कर अपने आपको भक्त साबित करने वाले लोगों की कमी नहीं है। अनेक जगह भगवान के विभिन्न स्वरूपों की मूर्तियां स्थापित कर उनको भजने के लिये जो शोर मचाया जाता है वह सब दिखावा है। भक्ति एक तरह से व्यापार,प्रदर्शन और मनोरंजन के रूप में दिखाई देने लगी है।
सच्चा भक्त न तो अपनी भक्ति का प्रदर्शन करता है और न प्रचार। भक्ति साधना तो एकांत का विषय है। जो लोग दिखाते हैं उनकी कोई आस्था नहीं रह जाती। अपने मन की मुराद पूरी करने के लिये कभी किसी मंदिर की पूजा करते हैं तो दूसरी ओर किसी सिद्ध के यहां भी मत्था टेकते हैं। अनेक ढोंगी गुरुओं के यहां मत्था टेककर यह आशा करते हैं कि वह भगवान के दर्शन करा देंगे। इस तरह के लोग भक्ति की कसौटी पर नाकाम सिद्ध होते हैं। जिनके मन में सच्ची भक्ति का भाव है वह कभी दिखावा नहीं करते बल्कि एकांत में ही नाम का स्मरण कर अपने कर्तव्य का निर्वाह करते हैं।
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संकलक एवं संपादक-दीपक भारतदीप
2 comments:
जिनके मन में सच्ची भक्ति का भाव है वह कभी दिखावा नहीं करते बल्कि एकांत में ही नाम का स्मरण कर अपने कर्तव्य का निर्वाह करते हैं।
' sach kha hai, lakin aaj kul bhaktee ko bhee duneya ne ek dekhava or tmasha bna rekha hai..'
regards
आभार इन सदविचारों के लिये.
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