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Monday, October 6, 2008

रहीम के दोहेः शक्तिशाली की पहचान है विनम्रता का गुण

रहिमन करि सम बल नहीं, मानत प्रभू की धाक
दांत दिखावत दी ह्यै, चलत घिसावत नाक


कविवर रहीम जी के मतानुसार हाथी के समान किसी में बल नहीं है पर वह भी भगवान की शक्ति को मानता है और अपनी नाक जमीन पर रगड़ता हुआ चलता है।

वर्तमान संदर्भ में संपादकीय व्याख्या-यहां रहीम ने विनम्रता के गुण का बखान किया है। भौतिकतावाद ने लोगों के संस्कारों को एकदम नष्ट कर दिया है। यही कारण है कि लोगों मेें अहंकार की प्रवृत्ति भयानक रूप से बढ़ गयी है। अपने आगे कोई किसी को समझता ही नहीं। सभी अपना सिर उठाये ऐसे व्यवहार करते हैं जैसे कि उनके पास ही सारी दुनियां के सुख साधन हैं। हालत यह है कि सुविधाओं की उपलब्धि के कारण शारीरिक व्यायाम तो कम हो गया है पर किसी को पकड़ कर जमीन पर पटकने की प्रवृत्ति जोर मारने लगी है। ताकत कम गुस्सा ज्यादा मार खाने की निशानी। यही कारण है कि छोटा हो या बड़ा किसी में सहनशीलता नहीं है। जहां देखो वही झगड़े पर आमदा लोग देखे जा सकते हैं। बातचीत में विनम्रता तो है ही नहीं। सभी के शब्दों में अहंकार भरा पड़ा है।

हाथी जो सभी जीवों में शक्तिशाली है वह जमीन पर सूंढ़ को रगड़ता हुआ चलता है। यह इस बात का प्रमाण है कि शक्तिशाली व्यक्ति को विनम्र होना चाहिये। जिसमें विनम्रता नहीं है वह शक्तिशाली नहीं होता। बरगत को पेड़ झुका है तभी किसी को छाया दे पाता है। यानि शक्तिशाली लोग दूसरों को आसरा देते हैं न कि किसी को डरा घमका कर काम चलाते हैं। अगर कोई अकड़ दिखाता है समझ लो कि वह कमजोर आदमी है और उससे संपर्क रखना ही गलत है। अगर कोई विनम्रता से व्यवहार कर रहा है तो समझ लो कि वह शक्तिशाली है और ऐसे व्यक्ति से संपर्क बढ़ाने से जीवन में सहयोग की आशा भी की जा सकती है। एक बात और है कि अगर हमारे अंदर कोई विशेष गुण या वस्तु है तो उसका भी अहंकार न कर दूसरों के साथ उसका लाभ बांटना चाहिये। यही होता है आदमी की शक्ति का प्रमाण कि वह दूसरे में हौंसला और विश्वास बढ़ाये न कि उसे गिराये।
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1 comment:

Udan Tashtari said...

आभार व्यख्या के लिए.

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