समस्त ब्लॉग/पत्रिका का संकलन यहाँ पढ़ें-

पाठकों ने सतत अपनी टिप्पणियों में यह बात लिखी है कि आपके अनेक पत्रिका/ब्लॉग हैं, इसलिए आपका नया पाठ ढूँढने में कठिनाई होती है. उनकी परेशानी को दृष्टिगत रखते हुए इस लेखक द्वारा अपने समस्त ब्लॉग/पत्रिकाओं का एक निजी संग्रहक बनाया गया है हिंद केसरी पत्रिका. अत: नियमित पाठक चाहें तो इस ब्लॉग संग्रहक का पता नोट कर लें. यहाँ नए पाठ वाला ब्लॉग सबसे ऊपर दिखाई देगा. इसके अलावा समस्त ब्लॉग/पत्रिका यहाँ एक साथ दिखाई देंगी.
दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका


हिंदी मित्र पत्रिका

यह ब्लाग/पत्रिका हिंदी मित्र पत्रिका अनेक ब्लाग का संकलक/संग्रहक है। जिन पाठकों को एक साथ अनेक विषयों पर पढ़ने की इच्छा है, वह यहां क्लिक करें। इसके अलावा जिन मित्रों को अपने ब्लाग यहां दिखाने हैं वह अपने ब्लाग यहां जोड़ सकते हैं। लेखक संपादक दीपक भारतदीप, ग्वालियर

Saturday, September 13, 2008

संत कबीर वाणीः शराब तो इंसान को पशु बना देती है

औगुन कहूं सराब का, ज्ञानवंत सुनि लेय
मानुष सों पसुवा करै, द्रव्य गांठि का देय


संत शिरोमणि कबीरदास जी कहते हैं कि शराब में ढेर सारे अवगुण हैं। ज्ञानी लोगों को यह बात समझ लेना चाहिये। शराब तो मनुष्य को एक तरह से पशु बना देती है और इसके लिये वह अपनी गांठ से पैसा भी नष्ट करता है।

वर्तमान संदर्भ में संपादकीय व्याख्या-सैंकड़ों वर्ष पहले कबीरदास जी ने शराब के अवगुणों का वर्णन किया था। कहने को आज समाज सभ्य होता जा रहा है पर उसके रीति रिवाजों में जिस तरह तमाम तरह के व्यसन भाग बन रहे हैं उस पर किसी को चिंता नहीं है। मजे की बात यह है कि लोग धर्म के नाम पर तमाम तरह की रिवाज अपनाये हुए हैं पर उसमें शराब आदि का उपयोग धड़ल्ले से किया जाता है। कई जगह तो मूर्तियों पर ही शराब चढ़ाने की प्रथा भी शुरू की गयी है। कहने को भारतीय संस्कृति और संस्कारों का दावा तो तमाम तरह के प्रचार माध्यमों में किया जाता है पर वर्तमान में समाज किस तरह अंधा होकर दुव्र्यसनों को अपने रीति रिवाजों का हिस्सा बना बैठा है उस पर कोई ध्यान नहीं देता। सगाई, शादी, पिकनिक या कही बैठक होने पर शराब की बोतल खोलकर लोग अपनी खुशियों का इजहार करते हैं। क्रिकेट टीम जीतने पर बीयर खोलने के दृश्य कई जगह दिखाई देते हैं। हालांकि कहने वाले कहते हैं कि बीयर शराब नहीं होती पर यह अपने आप में एक व्यर्थ का तर्क है। नशा सभी में हैं और आदमी उसे जब पीता है तो वह पशु भाव को प्राप्त हो जाता हैं लज्जा और सम्मान से परे होकर वह बात करता है। शराब पीने से कई घरों की आर्थिक और सामाजिक स्थिति खराब हूई है इस तथ्य को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है।

तमाम तरह के ऐसे लोग हैं जो अपनी जाति, भाषा और धर्म के समूहों के नेतृत्व का दावा करते हैं पर वह ऐसी बुराईयों की तरफ ध्यान नहीं देते जिससे उनके लोगों की मानसिकता विकृत हो रही है। आजकल तो समाज में शराब का सेवन इस मात्रा में बढ़ गया है लोग एक दूसरे से खुलेआम काकटेल पार्टी मांगते हैं। पहले लोग पीते थे तो छिपाते थे पर आजकल तो दिखाकर पीते हैं कि देखो हम आधुनिक हो गये हैं। शराब पीने की बढ़ती प्रवृत्ति ने समाज को अंदर से बहुत खोखला कर दिया है। समाज विज्ञानी इस बात को कहते हैं पर जिनके हाथ में समाजों का नियंत्रण है वह केवल अपने नारे लगाने और झूठा स्वाभिमान दिखाकर अपने लोगों की बुराईयों को छिपाते हैं।
सच बात तो यह है कि शराब पीना निजी मामला नहीं है। जो शराब पीते हैं उन पर विश्वास तो कतई नहीं करना चाहिये। इस पाठ के संपादक का मत तो यह है कि अगर हम स्वयं भी शराब पीयें तो हमें अपने पर ही विश्वास नहीं करना चाहिये। जब किसी से किसी काम का वादा करें तो मान लेना चाहिये कि झूठा वादा कर रहे हैं। न भी माने तो दूसरे लोग ऐसा ही समझते हैं। शराब पीने से जो मानसिक और बौद्धिक क्षति होती है उसकी अनुभूति तभी हो सकती है जब पीने वाले उसे छोड़ कर देखें।

कहने वाले कहते हैं शराब पीने से गम कहते हैं पर स्वास्थ्य विज्ञानी कहते हैं कि इसके सेवन से मनुष्य की इच्छा शक्ति में कमी आती है और वह जीवन संघर्ष से बहुत जल्दी घबड़ा जाता है।
--------------------------
यह पाठ मूल रूप से इस ब्लाग‘शब्दलेख सारथी’ पर लिखा गया है। अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की शब्दलेख पत्रिका
2.दीपक भारतदीप की अंतर्जाल पत्रिका
3.दीपक भारतदीप का चिंतन
संकलक एवं संपादक-दीपक भारतदीप

1 comment:

rakhshanda said...

बिल्कुल सही कहा आपने, जो चीज़ इंसान के सोचने समझने की सलाहियत, अच्छा क्या है बुरा क्या है, इसकी तमीज मिटा दे, वो नफरत के काबिल है...काश सब ऐसा समझ सकें,,

विशिष्ट पत्रिकायें