जल में बसै कमोदिनी, चंदा बसै अकास
जो है जाका भावता, सो ताही के पास
संत शिरोमणि कबीरदास जी के अनुसार जल में कमलिनी का निवास है पर उसका प्रेमी चंद्रमा उससे बहुत दूर होता है। जो हृदय को पसंद हैं वही वास्तव में पास होते हैं।
आगि आंचि सहना सुगम, सुगम खड़ग की धार
नेह निबाहन एक रस, महा कठिन ब्यौहार
संत शिरोमणि कबीरदास जी की मान्यता है कि आग की आंच को सहना सरल है। तलवार की धार का प्रहार भी झेला जा सकता है पर प्रेम रस के वशीभूत होकर कोई संबंध बना लिया तो उसे निभाना अत्यंत कठिन होता है।
संक्षिप्त संपादकीय व्याख्या-मनुष्य जब किसी प्रेम से करता है तो उस पर अपनी जान न्यौछावर करता है। उसका लगाव सब जगह जाहिर होता है। जो लोग केवल दिखावे का प्रेम करते है अपने व्यवहार से यह प्रकट कर देते हैं कि उनका प्यार नकली है। स्वार्थ के वशीभूत होकर प्रेम करने वाले अपना काम निकलते ही संबंध तोड़ देते हैं पर जो वास्तव में प्रेम करते हैं वह कभी अपने स्वार्थ की पूर्ति के लिये आग्रह नहीं करते।
कई कारणों वश लोग स्वार्थों की वजह से पास जरूर आते हैं पर वह प्रेमी नहीं हो जाते। प्रेम तो हृदय में जलने वाला ज्योति पुंज है जो दूर होने पर ही प्रकाश देता है। कमलिनी चंद्रमा से प्रेम करती है पर वह उससे कितना दूर है। उसी तरह मनुष्य भी जब किसी से प्रेम करता है तो उसके दूर और पास होने की परवाह नहीं करता।
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2 comments:
बहुत अच्छा लिखा है...सुंदर भाव है.....
लाजवाब......
आभार.
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