नहिं तो औगुन ऊपजे, कहि सब संत सुजान
संत शिरोमणि कबीरदास जी कहते हैंं कि जिन्होंने अपनी जिव्हा पर नियंत्रण कर लिया यह पूरा संसार ही उनका अपना हो गया। एसा करने से तन और मन में कोई विकास उत्पन्न होता है-यह संत लोग कह गये हैं।
कागा काको धन हरै, कोयल काको देत
मीठा शब्द सुनाय के, जग अपनी करि लेत
संत शिरोमणि कबीरदास जी कहते हैं कि अपने मन में यह विचार करें कि कौवा किसके धन का अपहरण करता है या कोयल किसको क्या देती है। कर्कश स्वर के कारण कौवा तिरस्कार झेलता है और कोयल लोगों का सम्मान पाती है।
जिहि शब्दे दुख ना लगे, सोई शब्द उचार
तपत मिटी सीतल भया, सोई शब्द ततसार
संत शिरोमणि कबीरदास जी कहते हैं कि जिन शब्दों से दूसरों को कष्ट न हो उनका ही उच्चारण करो। जिससे दुःखी मनुष्य का संतप्त मन भी प्रसन्न हो जाये ऐसी ही वाणी बोलें।
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