कहैं कबीर समुझै नहीं, बांधा जमपुर जाय
संत शिरोमणि कबीरदास जी कहते हैं कि जो श्राद्ध का काम कराते हैं और अन्य देवों को चढ़ायी हुई सामग्री खाते हैं वह अज्ञानी नहीं जानते कि अपने साथ पाप बांधकर यमपुर जाना है।
देवि देव मानै सबै, अलख न मानै कोय
जा अलेख का सब किया, तासों बेमुख होय
संत शिरोमणि कबीरदास जी कहते हैं कि सभी मनुष्य अपने सामने देवी देवताओं को तो मानते हैं परंतु जो निराकार परमात्मा उसे कोई नहीं मानता जिसने इस सारे संसार की रचना की है।
वर्तमान संदर्भ में व्याख्या-संत कबीरदास जी भारतीय समाज में व्याप्त अंधविश्वास के अत्यंत विरोधी थे। जीवन और मृत्यु को लेकर जितना ढोंग हमारे समाज में हैं वह कहीं अन्यत्र दृष्टिगोचर नहीं होता है। इनमें एक हैं श्राद्ध कर्म करवाना और उसका भोजन करना। देखा जाये तो यह देह पांच तत्वों से बनी है जिसका संचालन इसे धारण करने वाला जीवात्मा करता है और उसके निकल जाने के बाद यह देह तो मिट्टी है पर इसी को लेकर लोग अपने प्रियजनों की मृत्यु पर जो दिखावे का शोक व्यक्त करते हुए जो भोजन आदि कराते हैं उसका कोई औचित्य नहीं है। इससे जीवित लोग केवल अपनी आर्थिक शक्ति का प्रदर्शन करते हैं ताकि जो विपन्न लोग ऐसा करने मेंे असमर्थ हैं वह उनसे प्रभावित रहें।
सच तो यह है कि इस दृश्व्य जगत को देखकर लोग पत्थर की मूर्तियों को पूजते हैं पर इसका निर्माण करने वाले निरंकार अलख ईश्वर की उपासना कोई नहीं करता। सभी मनुष्य केवल जीवन भर अपनी आंखों से देखी माया के इर्दगिर्द ही घूमते हैं। जो निराकार परब्रह्म हैं उसमें ध्यान लगाकर उसकी भक्ति करने के लिये कोई तैयार नहीं होता जबकि भक्ति और ज्ञान की प्राप्ति उसी निष्काम भक्ति से प्राप्त होता है।
संकलक एवं संपादक-दीपक भारतदीप
No comments:
Post a Comment