1.मर्यादा पालन के लिए सागर आदर्श माना जाता है। वर्षकाल मं उफनती हुई अनेक नदियां अपना जल लेकर उसमें विसर्जित करती हैं पर वह अपनी मर्यादा को लांघकर कभी बाहर नहीं आता परंतु प्रलय आने सागर अपने किनारे तोड़कर बाहर आता है और पूरी धरती को जलमग्न कर देता है। महान लोग सागर से भी अधिक मर्यादित होते हैं जो भयंकर विपत्ति आने पर भी अपनी मर्यादा नहीं छोड़ते।
2.मंद बुद्धि या मूर्ख व्यक्ति अपने जीवन में पशु के समान ही समझा जाता है। जिस तरह पशु को उचित अनुचित का ज्ञान नहीं होता उसी तरह मूर्ख व्यक्ति भी अज्ञान के अंधेरे में रहता है। जिस तरह पैर में पड़ा कांटा पीड़ा पहुंचाता है वैसे ही वह अपने लोगों के लिये संकट खड़े करता है।
3.प्रत्येक वस्तु या व्यवहार अपनी सीमा में ही सुशोभित होता है। अति हमेशा खराब होती है। अति विनम्रता, अति सहनशीलता, अति प्रशंसा और अति घनिष्ठता भी घातक होती है। अति का सभी जगह त्याग कर देना चाहिए।
4.मनुष्य के जीवन में सब कुछ पूर्व निर्धारित होता है इसलिये अनावश्यक रूप से भटकना या चिंतित होना ठीक नहीं है इससे कोई समस्या हल नहीं होती। मनुष्य जैसे ही मां के गर्भ में आता है उसका भविष्य निर्धारित हो जाता है। उसका जीवन, मरण, समय, प्रवृत्तियां, सुख दुःख, अच्छा-बुरा एवं ख्याति कुख्याति परमात्मा द्वारा निर्धारित हो जाती है।
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लेखक संपादक दीपक भारतदीप, ग्वालियर
Thursday, June 26, 2008
चाणक्य नीतिःअनावश्यक रूप से भटकना ठीक नहीं
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1 comment:
बहुत खूब ! आभार !
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