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Saturday, May 24, 2008

संत कबीर वाणी:क्रोध की अग्नि में जलता है संसार

क्रोध अगनि घर घर बढ़ी, जल सकल संसार
दीन लीन निज भक्त जो, तिनके निकट उबार


संत शिरोमणि कबीरदास जी कहते है कि क्रोध की अग्नि घर घर में जल रही है और उसमें सारा संसार ही जल रहा है। परंतु जो भक्त परमात्मा का स्मरण कर उसमें लीन रहता है उसकी संगति करने से उद्धारा हो सकता है। सत्संग कर ही क्रोध से बचा जा सकता है।

कोटि करम लागे रहै, एक क्रोध की लार
किया कराया सब गया, जब आया हंकार

संत शिरोमणि कबीरदास जी कहते है कि क्रोध की साथ करोड़ों पाप लगे रहते हैं। जब आदमी अहंकार में आता है तो उसके सब किये कराये पर पानी फिर जाता है।

वर्तमान संदर्भ में व्याख्या-सच देख जाये आदमी के संकट का कारण क्रोध ही होता है जो उसके अंदर स्थित अहंकार प्रकृति से उत्पन्न होता है। आदमी पहले क्रोध करता है फिर ऐसे काम कर बैठता है जिसका उसे बाद में पछतावा करने का भी अवसर नहीं मिलता। बाद में वह अपने ही क्रोध के उन पलों को यादकर भारी तकलीफ उठाता है, जिसमें उसने वह कर्म किया था। जब क्रोध आये तो अपने आप पर नियंत्रण करने का सरल उपाय जो इन पंक्तियों के लेखक की समझ में आता है वह यह कि जब शरीर में क्रोध की लहर उठती हुई लगे अपने मन में ओम शब्द का स्मरण करना चाहिए या जो हमारा इष्ट है उसकी मूर्ति को अपने मन की आंखों में ध्यान करना चाहिए। इससे क्रोध पर नियंत्रण किया जा सकता है।

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