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Sunday, April 13, 2008

संत कबीर वाणी:दूसरे को प्रसन्न करें ऐसे लोगों का है अकाल

मानुस खोजत मैं फिरा, मानुस बड़ा सुकाल
जाको देखत दिल घिरे, लाका पड़ा दुकाल


संत शिरोमणि कबीरदास जी कहते हैं कि मैं इधर-उधर फिरकर मनुष्य ढूंढता फिरा जिनमें शुद्ध भावना हो उनका एकदम अकाल है। ऐसे मनुष्य जिनको देखकर दिल में प्रसन्नता हो उनका तो यहां मिलना दुर्लभ है।

कायर सेरी ताकवै, सूरा भांड़ पांव
सीस जीव दोऊ दिया, पीठ न आया घाव


संत शिरोमणि कबीरदास जी कहते हैं कि कायर तो भाग जाता है पर जो योद्धा होता है वह अपना पांव अड़ा कर खड़ा हो जाता है। भगवान के दर पर सच्चा भक्त अपना सिर झुकाता है और पीठ देकर वहां से भागता नहीं है।


वर्तमान संदर्भ में व्याख्या-इस दुनियां में मनुष्य तो बहुत हैं पर उनमें कितने लोग ऐसे है जिनको देखकर दूसरे लोग प्रसन्न होते है यह एक विचारणीन विषय है। सभी लोग अपने स्वार्थवश एक दूसरे से संपर्क करते हैं और इसी कारण किसी से हार्दिक प्रेम हो नहीं पाता है। फिर मनुष्य को उसके मन से पहचाना जाता है और वह उस अपने स्वार्थो के बंधन में रख देता है इसलिये किसी को किसी का मिलना सुहाता नहीं है।

हम लोगों को लगता है कि हमारी नीयत और कुविचारों को कोई नहीं जानता है-यह वास्तव में भ्रम है। कोई अपनी नीयत खराब रखकर हमसे कोई अच्छी बात कहता है तो हम उसकी कुटिलता को समझ जाते हैं। उसी तरह अगर हम ऐसा करते हैं तो दूसरा व्यक्ति भी समझ जाता है। असल में हमारे विचारो कहीं न कहीं हमारे चेहरे और वाणी से भी बाहर संप्रेक्षण होता है जिसकी अनुभूति हमारी आंतरिक इंद्रियां कर लेतीं हैं इसलिये ही किसी का भी सच किसी से छिप नहीं पाता। यही कारण है कि ऐसे लोग नहीं मिल पाते जिनको देखते ही मन प्रफुल्लित हो उठता है। अगर हम चाहते हैं कि हम दूसरों को प्रसन्न करें तो उसके लिये पहले अपनी नीयत और विचारों में शुद्धता लायें।

1 comment:

राज भाटिय़ा said...

दीप्क भाई तुम सच मे एक दीपक की तरह से रोशानी कर रहे हो चिंतन की ,विचारो की, धन्यवाद

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