समय पाय फल होत है, समय पाय झरि जाय
सदा रहे नहिं एक सौ, का रहीम पछिताय
कविवर रहीम कहते हैं कि जिस तरह पेड़ में समय के अनुसार फल लगते हैं और फिर झड़जाते हैं उसी तरह मनुष्य के जीवन में भी दु:ख सुख के पल आते हैं। समय कभी एक जैसा नहीं रहता इसलिए बुरे समय में मनुष्य को घबडाना नहीं चाहिऐ।
आज के संदर्भ में व्याख्या-कविवर रहीम ने बरसों पहले यह विचार व्यक्त किया था तबतो जीवन शैली इतनी कठिन नहीं थी पर आज के परिवेश में तो पूरी दिनचर्या ही कठिनाईयों से भरी पडी है। ऐसे में आदमी थोडी परेशानी आने पर घबडा जाता है। खास तौर से कार्यस्थलों से घर की दूरी और संयुक्त परिवारों के बिखरने से आदमी अपनी मुसीबतों में अकेला पड़ जाता है और उसके निकट कोई मनोबल बढाने वाला नहीं होता ऐसे में उसे लगता है कि वह तबाह होकर बिखर जायेगा। हम ज़रा इस बात पर गौर करें कि जीवन में अच्छे पल भी हमने ही भोगे होते है और जो अधिक होते हैं तो फिर बुरे पलों में विचलित क्यों होना चाहिए?
रहीम जी का यह सन्देश आज के संदर्भ में और अधिक प्रासंगिक हो जाता है जब सीमित परिवारों के चलते अधिक लोग मनोबल बढाने के लिए नहीं दिखते। कहीं एक भाई और एक बहिन हैतो कहीं दो भाई या कहीं दो बहिन हैं। उनके विवाह भी अब दूर होते हैं। नौकरी के कारण भी अपने लोगों से बिछुड़ना पड़ता है। कहीं पति-पत्नी अकेले हैं और बच्चा छोटा है। मतलब यह यह है लोगों को अपने आसपास आत्मीय लोगों की कमी महसूस होती है ऐसे में थोडी विपत्ति उनको विचलित कर देती है। ऐसे में उनको यह सोचना चाहिऐ कि अगर अच्छा समय नहीं रहा तो बुरा समय भी नहीं रहेगा। इसके साथ ही किसी का बुरा समय देखकर उसका लाभ उठाने या उसका मजाक उड़ने की भी नहीं सोचना चाहिऐ क्योंकि उसका भी कभी अच्छा वक्त आ सकता है और वह अपना बदला ले सकता है या बुरे वक्त में अपनी मजाक उडाने या लाभ लेने वाले से बदला ले सकता है।
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