झूठे गुरु के पक्ष को, तजत न कीजै बार
द्वार न पावै शब्द का, भटके बारम्बार
संत शिरोमणि दस जी कहते हैं कि उस गुरु का त्याग कर देना चाहिऐ जो झूठे ज्ञान का उपदेश करता है। उसकी बात को कभी भी नहीं मानना चाहिऐ। ऐसे गुरु के उपदेश से भगवान् की भक्ति का द्वार तो प्राप्त नहीं होता उल्टे भटकाव होता है।
आज के संदर्भ में व्याख्या- आजकल ऐसे गुरु बहुत पूज रहे हैं हैं जो इस सांसारिक ज्ञान का उपदेश अधिक देते हैं पर आध्यात्मिक ज्ञान उनको भी नहीं है। हमने कई बार देखा होगा कि कई संत समाज के पुराने कर्मकांडों को ही स्वर्ग में जाने का मार्ग बताते हैं। श्राद्ध आदि से पूर्वजों की आत्मा की मुक्ति का मार्ग बताते हैं- जबकि हमारे मूल ग्रंथों के अनुसार तो हर व्यक्ति अपने कर्मों के अनुसार फल पाता है और भगवान् की भक्ति पर उसका मोक्ष होता है। किसी की मुक्ति किसी दूसरेके दान पुण्यसे संभव नहीं है। इस तरह कुछ संत लोगों में अपने उपदेश कुछ इस तरह देते हैं कि बड़ी आयु के लोग यह सोचकर खुश होते हैं कि उनके बाद उनकी संतानें उनका नाम लेकर दान करेंगी तो उनका नाम भी चलता रहेगा। इससे खासतौर से महिलाएं बहुत खुश होतीं है क्योंकि वह धर्मभीरु होतीं है।
आत्मा अनश्वर हैं और उसकी मुक्ति उसके द्वारा धारण की देह के कर्मों से ही संभव है पर आजकल के गुरु झूठे ज्ञान के द्वारा ही वाह-वाही लूट रहे हैं, अत: ऐसे गुरु की शरण में जाना चाहिए जो ज्ञान की मूल तत्व का जानकर हो।
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लेखक संपादक दीपक भारतदीप, ग्वालियर
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2 comments:
आज के समय के सन्दर्भ मे ये कहना ग़लत नही होगा की लोग ऐसे ही गुरु को पूजते है।
दीपक जी सब से पहले जितने भी गुरु टी बी पर आते हे, चमत्कार दिखाते हे,ओर ऊचे ऊचे सिहासनॊ पर बेठते हे,ओर अपने नामो के आगे बडे बडे नाम लगते हे इन्हे भगाओ
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