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Thursday, March 6, 2008

संत कबीर वाणी: मसखरा मन कब कहाँ जाये

जूझेंगे तब कहेंगे, अब कुछ कहा न जाय
भीड़ पड़े मन मसखरा, लड़ै किधौं भगि जाय

संत शिरोमणि कबीरदास जी कहते हैं की जब मनुष्य अपने जीवन में संघर्ष करता है तब उसके परिणाम के बारे में कुछ कह नहीं पाता क्योंकि उसका अपने मन पर नियंत्रण नहीं रहता। कब कोई भारी विपदा आ जायेऔर मसखरा मन किधर भाग जाये यह कोई बता नहीं सकता।
लेखकीय अभिमंत--यहाँ कबीरदास जी लोगों को अपने मन पर नियंत्रण रखने का संदेश देते हैं। हम अगर देखें तो कई जगह कोई घटनाक्रम होता है तो हम अपनी कोई राय कायम नहीं कर पाते कि पता नहीं हम गलत तो नहीं हैं। कहीं किन्हीं दो व्यक्तियों में विवाद होता है तो हम सत्य बात नहीं कह पाते क्योंकि लगता है पता नहीं कब गलत पक्ष वाले के सहयोग की जरूरत पड़ जाये। कई बार हमारे सामने किसी विषय पर दो मार्ग होते हैं पर हम किसी एक का चयन नहीं कर पाते कि पता नहीं अधिक लाभदायक कौनसा है। हम कई बार ऐसे काम करते हैं क्योंकि दूसरे भी करते हैं भले ही कोई परिणाम हमें न प्राप्त हो पर लगता है कि कहींहम दूसरों से पीछे न रह जाएं। चलाता है मन और लगता है कि हम चल रहे हैं।

पूरा जीवन यही भ्रम रहता है और हमारा मसखरा मन हमें भटकाता है और हम समझ नहीं पाते। विषयों में मन लगता है और हम लगे रहते हैं। उसके ऐसे अभ्यस्त हो जाते हैं कि जब मन भक्ति की तरफ जाना चाहता है तो अपनी बुद्धि से उसे रोकते हैं और पुन: विषयों की तरफ लगाते हैं तब वह त्रस्त भी होता है पर तब समझ नहीं पाते। अपनी मसखरी का शिकार खुद होता है पर फिर हमारी देह में करता है विकारों को उत्पन्न। इसलिए मन पर नियंत्रण करना जरूरी है। अपने मन को विषयों में उतना ही लगाएं जितना सांसरिक दृष्टि से आवश्यक है और फिर उसे भक्ति में भी लगाओ। मान लो मन हमें चला रहा है। कभी उसे सुख चाहिऐ तो कभी परिश्रम की इच्छा भी उसमें होती है तो कभी भक्ति की। मन से ही मनुष्य हैं तो उसे समझना जरूरी है तभी हम अपने को समझ पायेंगे.

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