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Saturday, January 5, 2008

संत कबीर वाणी:पहले मन कौआ था अब हंस हो गया

कंचन दीया कारन ने, दरोपदी ने चीर
जो दीया सो पाइया, ऐसे कहैं कबीर


संत शिरोमणि कबीरदास जे कहते हैं कर्ण ने स्वर्ण दान दिया और द्रोपदी ने वस्त्र का दान दिया. उन्होने जो दान दिया उससे कई गुना बढ़कर उनको प्राप्त हुआ.
भाव-कर्ण को अनंत यश मिला तो चीरहरण के समय द्रोपदी को भगवान् श्री कृष्ण ने वस्त्र प्रदान किया.

पहिले यह मन काग था, करता जीवन घात
अब तो मन हंसा, मोती चुनि-चुनि खात


संत शिरोमणि अपने मन का वर्णन करते हुए कहते हैं की पहले मेरा मन कौए के समान था जो जीवन पर घात करता रहता था , किन्तु अब यह मन हंस के समान हो गया है जो चुन-चुन कर मोती खाता है.

अभिव्यक्ति-ऐसा हर व्यक्ति का मन कौए के मन की तरह होता है पर जब उसे ज्ञान प्राप्त होता है तो उसका मन हंस के समान होता है और वह केवल उन्हीं कर्मों में लिप्त होता है जो सात्विक होते हैं और दूसरों को सुख भी पहुंचता है.

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