
१।जो नीच प्रवृति के लोग दूसरों के हृदय को चोट पहुँचाते है और अपनी वाणी से कटु वचन बोलते हैं,दूसरो की बुराई कर प्रसन्न होते है, वह कभी-कभी अपने विषैले और कटु वचनों से अपने को भी घायल कर बैठते हैं। अपने वचनों द्वारा बिछाये जाल में स्वयं भी घिर जाते हैं और उसी तरह नष्ट हो जाते हैं जैसे रेत के टीले को बांबी समझकर सांप उसमें घुस जाता है और फिर निकल नहीं पाता और दम घुटने से उसकी मौत हो जाती है।
२. समर्थ पुरुष के लिए अयोग्य वस्तु भी आभूषण के रुप में होती है जबकि नीच के लिए योग्य भी अनुपयोगी और दोषयुक्त हो जाती है। देवताओं को अजर-और अमर बनाने वाला अमृत राहू के लिए प्राणघातक सिद्ध हुआ। वही प्राणघातक विष भगवान् शिव के लिए आभूषण बन गया।
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