जाके जिव्या बन्धन नहीं, हृदय में नहीं सांच
बाके संग न लागिये , खाले वटिया काँच
इसका आशय यह है कि जिस व्यक्ति का अपनी वाणी पर नियंत्रण नहीं है और उसके हृदय में भी सत्य नहीं है उसके साथ रहकर भी तुम्हें कुछ भी प्राप्त नहीं हो सकता। साधू , सती और सूरमां राखा रहे न ओट
माथा बाँधी पताक सौं, नेजा भाले चोट
आशय यह कि साधू, और शूरवीर को किसी पर्दे की जरूरत नहीं होती, इनके आचरण रूपी ध्वजा उनके मस्तक के साथ रहती है, चाहे कोई भी उन पर अपने भाले से चोट करे। यह लोग अपने प्राणों को त्याग देंगे पर अपने सिद्धांत से नहीं हटेंगे ।सूचना- सुधि पाठकों से निवेदन है कि इसमें भाषा के संबंध में पूर्ण सावधानी रखने का प्रयास किया गया है कोई त्रुटि हो तो लेखक के इस भाव को समझें कि इन्टरनेट पर अपने ढंग से भारतीय दर्शन और आध्यात्म का प्रचार करना चाहता है ,और आप उसे क्षमा करें ।
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