देशी गुरू नहीं
विदेशी कोच चाहिए
अपने देश का रुपया नहीं
विदेशी डालर या पौंड चाहिए
कौन कह सकता है कि यह देश
सा ठ साल पहले विदेशी गुलामी के
खिलाफ जंग लड़ा होगा
उस समय अपने शहीदों के
साथ खङा होगा
क्यों होता उस समय कोई शहीद
जब उसे पता होता
अंग्रेज चले जायेंगे
उनकी खाल ओढ़कर
उनका झंडा अपने ही लहराएंगे
अपने देश के बच्चे बाहर जाकर
विदेशियों कि आभा चम्कायेंगे
लोगों को अब देश की आजादी नहीं
अपनी मनमानी के लिए
फ्रीडम चाहिए
माँ नहीं मदर चाहिए
पिता नही फादर चाहिऐ
इन्हें देशी आत्मीयता लगती है बुरी
हर जगह अंग्रेजियत चाहिए
हर जगह अंग्रेजियत चाहिए
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1 comment:
कविता की पवित्र भावना को शत्-शत् नमन!
ऐसे ही अंगरेजी की मानसिक गुलामी की पोल खोलते रहिये।
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