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Sunday, April 1, 2007

क्षणिका, छोटी कविता, हंसिकाएं और कुछ रुलायें

कभी पूजे जाते थे जो देवताओं की तरह
आज मुहँ छिपाये घूम रहे हैं वह
सच कहते हैं क्रिकेट भी जुआ है
लग गया तो पोबारह
नहीं लगे तो एक पाँव
रखने के लिए नहीं मिलती जगह
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लो आगया वादों का मौसम
चुनाव में वोट देने का मौसम
तुम अब अपने कान बंद कर लो
आंखों से देखना बंद कर लो
झूठा वादा
कभी पूरा न हो सकने वाले सपना
यही परोसा जाएगा तुम्हारे सामने
फिर भी तुम अपने मूहं से
सत्य कह नही पाओगे
अपनी जुबान खुद बंद रखोगे
बेहतर है बुला लो
खामोशी का मौसम
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वह क्रिकेट में देश की हार पर
नहीं शरमाते हैं
कहते हैं हार तो इंडिया की हुई है
हम तो भारत कहलाते हें
जीते तो इंडिया भी हमारा है
नहीं तो भारत ही हमारा है
जिसकी नही होती कभी हार
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