समस्त ब्लॉग/पत्रिका का संकलन यहाँ पढ़ें-

पाठकों ने सतत अपनी टिप्पणियों में यह बात लिखी है कि आपके अनेक पत्रिका/ब्लॉग हैं, इसलिए आपका नया पाठ ढूँढने में कठिनाई होती है. उनकी परेशानी को दृष्टिगत रखते हुए इस लेखक द्वारा अपने समस्त ब्लॉग/पत्रिकाओं का एक निजी संग्रहक बनाया गया है हिंद केसरी पत्रिका. अत: नियमित पाठक चाहें तो इस ब्लॉग संग्रहक का पता नोट कर लें. यहाँ नए पाठ वाला ब्लॉग सबसे ऊपर दिखाई देगा. इसके अलावा समस्त ब्लॉग/पत्रिका यहाँ एक साथ दिखाई देंगी.
दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका


हिंदी मित्र पत्रिका

यह ब्लाग/पत्रिका हिंदी मित्र पत्रिका अनेक ब्लाग का संकलक/संग्रहक है। जिन पाठकों को एक साथ अनेक विषयों पर पढ़ने की इच्छा है, वह यहां क्लिक करें। इसके अलावा जिन मित्रों को अपने ब्लाग यहां दिखाने हैं वह अपने ब्लाग यहां जोड़ सकते हैं। लेखक संपादक दीपक भारतदीप, ग्वालियर
Showing posts with label बाज. Show all posts
Showing posts with label बाज. Show all posts

Saturday, April 25, 2009

रहीम के सोरठा-पत्थर पानी में रहते हुए भी गीला नहीं होता

रहिमन नीर पखान, बूड़ै पै सीझै नहीं।
तैसे मूरख ज्ञान, बूझै पै सूझै नहीं।।

कविवर रहीम कहते हैं कि पत्थर पानी में डूब जाता है पर फिर भी गीला नहीं होता। यही स्थिति मूर्ख लोगों की है जो ज्ञान की खोज में रहते हैं पर उसे धारण नहीं करते और उनकी स्थिति जस की तस ही रहती है।

रहिमन बहरी बाज, गगर चढ़ै फिर क्यों तिरै।
पेट अधम के काज, फेरि आय बंधन परै।।


कविवर रहीम कहते हैं कि जिस तरह बहरा बाज आसमान में उड़ता है फिर भी उसे मुक्ति नहीं मिलती क्योंकि वह अपने पापी पेट के लिये बार बार इस धरती के बंधन में फंस जाता है।

वर्तमान संदर्भ में संपादकीय व्याख्या- इस विश्व में ज्ञानियों का झूंड हर जगह मिलेगा जो सामान्य लोगों को ज्ञान देता फिरता है। लोग उनको सुनते हैं और वाह वाह करने के बाद उनके संदेशों का सार भूल जाते हैं। कथित ज्ञानी भी कैसे हैं? किसी को पैसे की भूख है तो किसी को राज्य की और कोई प्रतिष्ठा की चाहत रखता है। हर ज्ञानी अपनी विचाराधारा के अनुसार तय रंगों के वस्त्र पहनता है जो कि इस बात का प्रमाण है कि कहीं न कहीं उसकी सोच दायरों में बंधी है। पूरे विश्व को स्वतंत्र और मौलिक सोच का संदेश देने वाले यह कथित ज्ञानी स्वयं ही मन के ऐसे बंधनों में बंधे रहते हैं जिनसे कभी उनकी स्वयं की मुक्ति नहीं होती।

भारतीय अध्यात्मिक ज्ञान ही इस बात की पुष्टि करता है कि मनुष्य का मन ही उस पर सवारी करता है और भ्रम उसे स्वयं की सवार होने का होता है। अपनी दैहिक आवश्यकताओं की पूति के लिये मनुष्य उससे अधिक प्रयास करता है। अर्थ संचय की उसकी क्षुधा उमर भर शांत नहीं होती पर इधर अंदर स्थित अध्यात्मिक शक्तियां भी अपने लिये कार्य करने के लिये प्रेरित करती हैं और वह इसके लिये इन कथित ज्ञानियों के यहां मत्था टेकता है पर जब वापस आता है तो फिर इसी दुनियां के जाल में फंस जाता है। तत्वज्ञान के बिना मनुष्य की स्थिति उस बाज की तरह होती है जो आकाश में उड़ता है पर फिर अपनी पेट की भूख के लिये इस धरती पर आता है और वह उस गीले पत्थर की तरह हो जाता है जो पानी में रहते हुए भी गीला नहीं होता।
...........................
यह पाठ मूल रूप से इस ब्लाग ‘शब्दलेख सारथी’ पर लिखा गया है। मेरे अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की शब्दलेख-पत्रिका
2.दीपक भारतदीप का चिंतन
3.अनंत शब्द योग
संकलक एवं संपादक-दीपक भारतदीप

विशिष्ट पत्रिकायें