हमारे देश में महापुरुषों के नाम पर बहुत सारे पंथ बन गये हैं। इसमें आजकल
कबीर पंथ की बहुत चर्चा है। संत कबीर दास
जी ने हमेशा ही भक्ति तथा ज्ञान साधना को एकांत का विषय बताया है। इतना ही नहीं
उन्होंने धर्म के नाम पर ठेकेदारी करने वाले कथित संतों पर भी तीखे कटाक्ष किये
हैं। हैरानी की बात यह है कि भगवान नाम
स्मरण से ही संसार सागर को पार करने का संदेश देने वाले संत कबीर के नाम पर भी पंथ
चलाकर भीड़ का एकत्रीकरण होता रहा है। संत
कबीर ने कभी कोई अपना संगठन या आश्रम बनाया
अथवा शिष्यों को दीक्षा देने का कोई नाटक किया हो इसका उदाहरण नहीं
मिलता। उनकी रचनायें भी शिष्यों की बजाय
संपूर्ण समाज को संबोधित करती हैं।
हरियाणा के एक कथित संत ने पूज्यनीय कबीर का जितना मखौल बनाया है उसका
उदाहरण आज तक नहीं देखा गया। कानूनी प्रक्रिया से बचने के लिये उन्होंने अपने
आश्रम के बाहर भक्तों और शिष्यों को एकत्रित कर लिया है ताकि वहां पुलिस प्रविष्ट
न हो सके। हथियार बंद लोग न केवल अपने कथित गुरू को बचाने का प्रयास करते वरन्
पुलिस पर हमले भी कर रहे थे। संत के पकड़े
जाने के बाद उनके महलनुमा आश्रम से अनेक प्रकार के हथियार तथा अन्य आपत्तिजनक
वस्तुऐं बरामद होने के समाचार आ रहे हैं। इस पूरे घटनाक्रम का न तो अध्यात्मिक
दर्शन और नही उन महान संत कवि कबीर दास जी
के संदेशों से संबंध है जिन्हें हमारा ज्ञानी समाज अपनी अनमोल धरोहर मानता है।
संत कबीर कहते हैं कि
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गुरुवा तो घर घर फिरै, दीक्षा हमरी लेहु।
कै बूड़ौं कै ऊबरौ, टका पर्दनी देहु।।
हिन्दी में भावार्थ-गुरू तो घर घर फिर अपनी दीक्षा देने के लिये फिरते हैं। उनका केवल धन से मतलब होता है शिष्य उबरे या डूबे इससे उनका कोई मतलब नहीं होता।
सतगुरु ऐसा कीजिये, जाके पूरन मन्न।
अनतोले ही देत है नाम सरीखा धन्न।
हिन्दी में भावार्थ-गुरु तो वही हो सकता है जिसका मन भरा हुआ है तथा वह बिना तोले ही नाम स्मरण जैसा धन देते हैं।
कबीर ने संपूर्ण भारतीय समाज को एक इकाई माना है। वह एक छोटे समूह का प्रतिनिघित्व नहीं करते थे
वरन् उन्हें भारतीय अध्यात्मिक दर्शन में एक ऐसा महापुरुष माना जाता है जिसकी
चर्चा के बिना कोई ज्ञानी संत वाणी से से निकले शब्द समूह को अधूरा ही मानता है।
आज हम जब कबीर पंथ के नाम पर चले ऐसे धार्मिक संगठनों या कथित संतों की क्रियायें
देखते हैं तो लगता है कि वह दोहरे अपराध में लिप्त हैं-एक तो उनका नाम लेकर भारतीय
अध्यात्मिक दर्शन के सिद्धांतों की आड़ में भ्रम फैलाना दूसरा कानून से अपने आप को बड़ा समझकर न्याय सिद्धांतों का
अपमान करना। इस दोहरे अपराध की सजा भी
दोहरी होना चाहिये। जिस अपराध पर कानूनी कार्यवाही होनी है वह तो करना ही चाहिये
साथ ही उन पर धर्म को अपमानित करने का मामला भी दर्ज किया जा सकता है। हालांकि इसी
बची यह भी खबर आयी है कि जिस तरह आश्रम से पुलिस पर आक्रमण किया गया उससे उस कथित
संत पर राष्ट्रद्रोह का मामला दर्ज किया गया है।
एक कथित कबीर पंथी अगर वास्तव में अपनी राह चला होता तो कभी भी ऐसी नौबत
नहीं आती। अब तो उनके भक्त भी उन्हें
छोड़कर जाते हुए यह कह रहे हैं कि वह कभी इस आश्रम में नहीं आयेंगे।
दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’’
कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक 'भारतदीप",ग्वालियर
poet,writer and editor-Deepak 'BharatDeep',Gwalior
http://dpkraj.blogspot.comयह कविता/आलेख रचना इस ब्लाग ‘हिन्द केसरी पत्रिका’ प्रकाशित है। इसके अन्य कहीं प्रकाशन की अनुमति लेना आवश्यक है।
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