भारतीय योग विद्या एक ऐसा विज्ञान है जिसका
अभी पूर्ण विशद अध्ययन किया जाना आवश्यक
है। हमारी देह एक है पर उसमें तमाम
तरह की हड्डियां और नसें आपस में जुडी हैं जो उसे धारण करने के साथ ही संचालित भी करती
है। देह को चलाने के लिये बुद्धि के साथ मन भी सक्रिय रहता हैं। सबसे बड़ी बात यह कि इन सबको धारण करने वाला
अदृश्य पुरुष या आत्मा है जो हम
स्वयं होते हैं। योगासन तथा प्राणायाम के बाद जब देह के साथ ही मन विकार रहित हो जाता है तब ध्यान के माध्यम से हम उस परम पुरुष के साथ
अपने अंदर साक्षात्कार कर सकते हैं।
जब उससे साक्षात्कार होता है तब
पता लगता है कि वह
हम स्वयं हैं। इसके बाद यह आभास होता है कि हमारी बुद्धि
और मन प्रथक विषय हैं जिनकी चंचलता के गुण की समझ आने
पर जीवन में भटकाव से बचा जा सकता
है।
हमारा मन ही हमारी देह का संचालन कर रहा
है। इस तत्व ज्ञान में ध्यान के माध्यम से स्थित होना ही समाधि का सर्वोत्म रूप है। जब किसी साधक को इस तरह की
समाधि लगाने का अभ्यास हो जाता है तब वह अपने हृदय के सांसरिक
भावों पर नियंत्रण कर लेता है। वह एक दृष्टा के रूप में जीवन में देह को सक्रिय रखते
हुए भी अपने अंदर कर्ता का अहंकार नहीं आने देता।
पतंजलि योग विज्ञान में कहा गया है कि
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सत्तवपुरुषमान्यताख्यातिमात्रस्य
सर्वभावधिष्ठातृत्वं सर्वज्ञातृत्वं च।।
हिन्दी मे भावार्थ-बुद्धि और आत्मा
के भिन्न होने की अनुभूति का ज्ञान जब समाधि में होता है तब योगी का सभी
भावों पर नियंत्रण हो जाता है। वह सर्वज्ञ हो जाता है।
हमारे
देश में भारतीय योग संस्थान से जुड़े अनेक विद्वान शिविरों में जिस तरह से भारतीय
योग विज्ञान का प्रचार कर रहें हैं वह
एकदम व्यावहारिक लगता है, पर देखा यह जा
रहा है कि कुछ व्यवसायिक योग शिक्षक अपने
आपको ज्ञानी के रूप मे प्रस्तुत कर अध्यात्मिक गुरु के रूप में
प्रतिष्ठित होकर समाज में योग को लेख भ्रम फैला रहे हैं। हमें उन पर कोई टिप्पणी
नहीं करनी मगर सच यह है उनका
लक्ष्य केवल अपने व्यवसायिक हित साधना है|
पतंजलि योग साहित्य के आठों भागों का वह सैद्धांतिक आशय पक्ष जानते हैं पर
व्यावहारिक अभ्यास का उनको अनुभव नहीं है। हमारा उद्देश्य तो केवल यह बताना है कि योगासन, प्राणायाम
और ध्यान का अभ्यास करने से
हमें देह, बुद्धि और मन के शुद्धता की
अनुभूति तो होती है पर उसके बाद अपने दैनिक कार्य करने के दौरान अपने समय का उचित ढंग से उपयोग करने का ज्ञान नहीं रहता। इसके लिये यह जरूरी
है कि पतंजलि योग विज्ञान के आठों भागों का अध्ययन करने के साथ ही समय मिलने
पर श्रीमद्भागवत गीता का भी अध्ययन करना चाहिये। योग
विद्या में पारंगत होने के बाद सत्संग में शामिल
होने के साथ ही अपने प्राचीन
ग्रंथों का अध्ययन भी अवश्य करें ताकि
जिंदगी बुद्धिमानी से गुजरे न कि
पेशेवर लोग हमें अध्यात्म के नाम पर बुद्धू
बनायें।
इस लेख का उद्देश्य आत्मप्रचार नहीं
वरन भारतीय योग संस्थान के तत्वावधान में समय
समय पर आयोजित किये गए शिविरों योगाभ्यास तथा वहाँ ख्याति प्राप्त विद्वानों के उद्बोधन से
प्राप्त ज्ञान तथां अनुभव को बाटना है| पवित्र संकल्प लेकर योगाभ्यास करने वाले साधकों
के संपर्क में आने पर जिस तरह का सुखद अहसास होता है उसको शब्दों में वर्णित नहीं किया जा सकता
पर भारतीय योग विद्या के महान प्रभाव का वर्णन किये बिना नहीं रहा सकता|
दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप’’
ग्वालियर मध्यप्रदेश
ग्वालियर मध्यप्रदेश
Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior Madhyapradesh
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर
athor and editor-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep",Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com
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यह पाठ मूल रूप से इस ब्लाग‘दीपक भारतदीप की अंतर्जाल पत्रिका’ पर लिखा गया है। अन्य ब्लाग
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