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Wednesday, May 27, 2009

श्री गुरु ग्रंथ साहिब की वाणी--दूसरे का रक्त पीने वाले का मन कभी पवित्र नहीं होता

‘जो रतु पीवहि माणसा तिन किउ निरमलु चीतु।‘
हिंदी में भावार्थ-
श्री गुरु ग्रंथ साहिब की वाणी के अनुसार जो मनुष्य दूसरों का खून पीता है उसका हृदय कभी निर्मल नहीं हो सकता।
‘मंदा किसै न आखि झगड़ा पावणा।‘
हिंदी में भावार्थ-
किसी से भी झगड़ा करना बहुत बुरा है।
वर्तमान संदर्भ में व्याख्या-श्रीगुरुनानक जी के समय में देश का बुरा हाल था। देश में जरा जरा सी बात झगड़े होते और राजनीतिक दृष्टि से शोचनीय दशा थी। सामाजिक दृष्टि से बिखराव के उस दौर में श्री गुरुनानक देव जी ने यह देखा कि इंसान द्वारा इंसान का शोषण किया जा रहा है और समाज में छोटी छोटी बातों पर अनावश्यक रूप से तनाव का वातावरण बनाया जाता है। यही कारण है कि उन्होंने समाज की विसंगितयों को इंगित करते हुए उनसे दूर रहने की सलाह देते हुए छोटी छोटी बातों पर हिंसक होने की प्रवृत्ति से भी बचने का संदेश दिया

यह आश्चर्य की बात है कि हमारे देश में अनेक महापुरुष हुए हैं और उनके मानने वाले भी कम नहीं है पर फिर भी देश में हालत वैसे ही जैसे उनके समाय हुए करतें थे। आशय यह है कि लोग महापुरुषों का नाम भगवान की तरह लेकर उनके भक्त या अनुयायी होने का ढिंढोरा तो पीटते हैं पर उनके संदेशों और बताये हुए मार्ग पर चलते नहीं हैं-कहीं कहीं तो विपरीत दिशा में चलते लगते हैं। हमारे समाज में धनिकों द्वारा तो मजदूरों और कर्मचारियों का शोषण-जिसे एक तरह से खून पीना ही कहा जा सकता है-किया ही जाता है जिसने बाहुबल और राज्य बल हासिल कर लिया वह भी अपने से कमजोर के विरुद्ध हिंसा कर अपना मनोरंजन करता है।
हैरानी की बात है कि हिंसा और शोषण के विरुद्ध इस देश के अनेक महापुरुषों-भगवान महावीर, बुद्ध.गुरुनानक देव,कबीर और महात्मा गांधी आदि-ने पूरे विश्व को अहिंसा का संदेश देकर इस देश की अध्यात्म गुरु की छबि बनायी पर यहां जरा जरा सी बात पर लोग उत्तेजित होकर हिंसा करते हैं और निर्धन और मजदूर का शोषण करने से भी बाज नहीं आते। इसका नतीजा यह हुआ है कि विदेश से आयातित विचारों को यहां भी बेचा जाता है। शोषण और अहिंसा के लिये हमें विदेशी लोग सलाहें देकर हमें अपमानित करते हैं। कभी कभी तो ऐसा लगता है कि धर्म के अनेक ठेकेदार तो इस ताक में बैठे रहते हैं कि कब केाई मुद्दा हाथ लगे और देश और समाज में हिंसा और नफरत का वातावरण पैदा करें। हम सभी सामान्य लोगों को यह बात समझना चाहिये कि ऐसे लोग हमारे मित्र कभी नहीं हो सकते।
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संकलक एवं संपादक-दीपक भारतदीप

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