ऋषयश्चक्रिरे धर्मयोऽनुचारः स नो महान्।।
हिंदी में भावार्थ-आयु,सफेद बाल, धन तथा अच्छे कुल होने से ज्ञान और आचरण का अधिक महत्व है। धर्म के अनुसार चलने वाले को ही समाज में सम्मान प्राप्त होता है।
न तेन वृद्धो भवति वेनास्य पलितं शिरः।
यो वै युवाऽप्यधीयानस्तं देवाःस्थविरं विदुः।।
हिंदी में भावार्थ-व्यक्ति के बाल सफेद होने से वह सम्मानीय नहीं हो जाता जबकि ज्ञान प्राप्त कर लेने के बाद युवा व्यक्ति भी समाज के सभी वर्गो में सम्मान पाता है।
वर्तमान संदर्भ में संपादकीय व्याख्या-भौतिक पदार्थों और कथित रूप से समाज की परंपराओं का ज्ञान रखने वाले लोग केवल इस आधार पर सम्मान पाना चाहते हैं कि उनके बारे में वह सबसे अधिक जानते हैं। अनेक लोग आयु में बड़े, अधिक धन और अच्छे कुछ का होने के कारण सम्मान पाने का मोह पाल लेते हैं। दिखाने के लिये लोग उनका सम्मान करते भी हैं पर अध्यात्मिक ज्ञान और उसके अनुरूप आचरण न होने के कारण हृदय से उनका सम्मान कोई नहीं करता।
तात्पर्य यह है कि अगर समाज में लोगों के हृदय में अपने सम्मान का भाव स्थापित करना है तो अध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त करने के साथ उसके अनुरूप आचरण करना आवश्यक है। वैसे तो परिवार में बड़ा, समाज में धनी और अनपढ़ों में शिक्षित होने से अनेक लोगों को लोग दिखावे के लिये मान देते हैं। सामने कोई नहीं कहता कि ‘आप में न तो अध्यात्मिक ज्ञान है न आचरण’, पर मन में सभी की सोच यही होती है। जो ज्ञान रटकर दूसरों को प्रभावित करते हैं वह भी फूलते हैं पर उनका आचरण उसके अनुरूप नहीं होता और लोग पीठ पीछे उनकी निंदा करते हैं या मजाक उड़ाते हैं। सम्मान तो वह है कि पीठ पीछे भी समाज के सभी वर्ग के लोग प्रशंसा करें। यह तभी संभव है जब अपने प्राचीन अध्यात्मिक ज्ञान होने के साथ उसके अनुरूप आचरण भी हो।
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संकलक एवं संपादक-दीपक भारतदीप
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