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Tuesday, April 14, 2009

मनुस्मृतिः अंगदोष से पुकारने और अपशब्द कहने पर दंड मिलना चाहिए

काणं वाप्यथवा खंजमन्यं वाणि तथाविधम्।
तथ्येनापि ब्रुपन्दाप्यो दण्डं कार्षापणा वरम्।।

हिंदी में भावार्थ-मनु महाराज के अनुसार किसी विकलांग व्यक्ति को उसके अंगदोष से पुकारने वाले को-काना या लंगड़ा कहकर बुलाने वाला- दंडित किया जाना चाहिये।
मातरं पितरं जायां भ्रातरं तनयं गुरुम्।
आक्षारयच्छत दाप्यः पन्थानं चाददद्गुरोः।।

हिंदी में भावार्थ-मनु महाराज के अनुसार जो व्यक्ति माता पिता, पत्नी, और भाई को अपशब्द कहता है तथा अपने गुरु के आने पर उसे सम्मान नहीं देता उसे भी दंडित किया जाना चाहिये।
वर्तमान संदर्भ में संपादकीय व्याख्या-हमारे समाज में जन्मजात अंगदोष वाले व्यक्ति को घृणित दृष्टि से देखने की बहुत बुरी भावना है। मनु महाराज इसका विरोध करते हैं। होता यह है कि अंगदोष वाले व्यक्ति कहीं बैठते हैं और किसी की बात का प्रतिकार करते हैं तो सामने वाला व्यक्ति हाल ही उसे अंगदोष से पुकारने लगता है। यह पापकर्म और अपराध है। देखा तो यह गया है कि इस तरह अंगदोष वाले लोग समाज से हमेशा अपमानित होने के कारण हीनभावना से भर जाते हैं। कहने को तो हमारा देश संस्कारवान लोगों से संपन्न कहा जाता है पर गांव हो या शहर अंगदोष वाले व्यक्तियों से कई बार बदतमीजी की जाती है। ऐसे लोगों की निंदा करने के साथ मनुमहाराज के अनुसार उनको आर्थिक दंड भी देना चाहिये।
वर्तमान विश्व समाज का एक वर्ग अपशब्दों के प्रयोग में अपने को सभ्य समझने लगा है। अभी हाल ही में प्रचार माध्यमों में आए एक विश्लेषण के अनुसार आजकल के युवक युवतियां वार्तालाप में अपशब्द बोलना फैशन की तरह अपनान लगे हैं। तय बात है कि वह कोई अपने से ताकतवर या समकक्ष व्यक्ति के प्रति ऐसा अपराध करने का साहस नहीं कर सकते और उनकी अभद्रता का शिकार उनसे छोटे वर्ग और सज्जन प्रकृति के लोग होते हैं। ऐसे लोगों की भी निंदा करने के साथ मनु महाराज के अनुसार दंड की व्यवस्था करना चाहिये।
वैसे यहां इस बात का उल्लेख करना आवश्यक है कि अधिकतर देशों में अंगदोष का उल्लेख कर बुलाना या अपशब्दों का प्रयोग करना कानूनी अपराध है। यह अलग बात है कि पीड़ित लोग झमेले में फंसने की बजाय खामोश रहना पसंद करते हैं पर उनके मन की पीड़ा से निकली हाय अपराधी को कभी न कभी लगती ही है।
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संकलक एवं संपादक-दीपक भारतदीप

1 comment:

Anil Kumar said...

अरे यही बात तो गोलमाल फिल्म में अमोल पालेकर ने कही थी - "जैसे अंधे को अंधा नहीं कहना चाहिये, लंगड़े को लंगड़ा नहीं कहना चाहिये, वैसे ही बूढ़े को बूढ़ा नहीं ... कहना चाहिये"। अब पता चला वो डायलॉग कहाँ से उठाया गया था! :)

गंभीर बात: कबीरदास जी ने विकलांगों के लिये भी आदर करने की बात कही थी, जिसे हम कितना मान पाये?

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