प्रकृतिरियं सत्तवतां न खलु वयस्तेजसो हेतुः
हिंदी में भावार्थ- सिंह का शावक भी मदमस्त हाथी पर हमला करता है। यह सत्य कहा गया है कि शक्तिशाली जीव का यही स्वभाव होता है। तेजस्विता के भाव का आयु से कोई संबंध नहीं होता।
वर्तमान संदर्भ में संपादकीय व्याख्या-भारत में एक आयु के बाद सामान्य व्यक्ति को अधेड़ और वृद्ध मान लिया जाता है-धनियों और प्रतिष्ठत लोगों पर यह नियम लागू करने में लोग स्वयं ही संकोच करते हैं। इसके विपरीत हम जिस पश्चिम संस्कृति की आलोचना करते हैं वहां व्यक्ति के साथ ऐसा व्यवहार नहीं होता। यही कारण है कि वहां लोगों की औसत आयु भारत से बड़ी होती है। होता यह है कि जो लोग गरीब और सामान्य वर्ग के हैं, बड़ी आयु होने पर उनके प्रति समाज और परिवार का दृष्टिकोण हेय हो जाता है और उनके अंदर भी यह कुंठा घर कर जाती है कि हमारी तो आयु हो गयी है और अब यह जीवन ढोना है और इसका परिणाम यह होता है कि वह समयपूर्व ही जीवन में थकावट अनुभव करते हैं।
अनेक ऐसे भी लोग है जो पचास और साठ की आयु के बाद बीमारी का शिकार हो जाते है और अगर उन्हें योग साधना या ध्यान करने को कहा जाये तो वह अपनी आयु का हवाला देकर इंकार कर देते हैं। कुल मिलाकर वह नकारात्मक भाव का ऐसा शिकार हो जाते हैं जिससे उनकी मुक्ति नहीं हो पाती। पश्चिमी देशों में बड़ी आयु में भी लोग सुबह की सैर और व्यायाम नियमित रूप से करते हैं इसलिये उनका स्वास्थ्य ठीक रहता है जबकि भारत में बुजुर्ग लोग स्थाई बीमारी से शिकार हो जाते है और मान लिया जाता है कि बुढ़ापा तो होता ऐसा ही है।
सभी जानते हैं कि जितनी बीमारियां दिमागी तनाव से पैदा होती है उतनी अन्य किसी से नहीं। ऐसे में अपने अंदर बड़ी आयु का भाव यह सोचकर नहीं पालना चाहिये कि हमारी बीमारियां तो दूर नहीं हो सकतीं। इतना ही नहीं सभी बड़ी के आयु के लोगों को अपनी आयु का विचार किये बिना जीवन में कार्य करते रहना चाहिये। तेजस्वी व्यक्ति पर आयु का प्रभाव नहीं होता और न कभी वह परेशान दिखते हैं। जहां आदमी ने यह सोचा कि अब तो मैं आराम करूंगा वहीं उसका शरीर ढीला और कमजोर पड़ने लगता है और उसके चेहरे की फीकी कांति देखकर लोग उसकी उपेक्षा कर देते हैं। इससे बेहतर यही है कि नियमित रूप से व्यायाम आदि करते रहें ताकि बुढ़ापे में अपने चेहरे का तेज कम न पड़े।
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संकलक एवं संपादक-दीपक भारतदीप
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