न चेमं देहमाश्रित्य वैरं कुर्वीत केनचित्
हिंदी में भावार्थ-सन्यासी को चाहिये कि दूसरे के कटु वचनों को भी सहन करे। उसे किसी के अभद्र शब्द का उत्तर वैसे ही नहीं देना चाहिये। किसी का अपमान नहीं करना चाहिये। यह देह तो नाशवान है इसके लिये किसी से क्या बैर करना।
एक एवं चरेन्नितयं सिद्धयर्थसहायवान्
सिद्धिमेकस्य सम्पश्यनन जहाति न हीयते
हिंदी में भावार्थ-सन्यासी को किसी से मित्रता की इच्छा न करते हुए जीवन में एकाकी विचरण करना चाहिये तभी उसे मोक्ष मिलता है। उसे यह विचार यह करना चाहिये कि न वह कुछ यहां छोड़ेगा और न कोई उसे छूटेगा।
पाणिग्राहस्य साध्वी स्त्री जीवतो वा मृतस्य वा
पतिलोकमभीप्सन्ती नाचरेत्सिञ्विदप्रियम्
हिंदी में भावार्थ-अगले जन्म में अच्छा पति पाने की इच्छा रखने वाली स्त्री को इस जन्म के पति की जीवित रहते या मृत्यु हो जाने पर भी उसे बुरा लगने वाला कोई कार्य नहीं करना चाहिये।
संक्षिप्त संपादकीय व्याख्या-वर्तमान काल में कई ऐसे संत हैं जो अपने आपको सन्यासी प्रदर्शित करते हैं पर उनका यह केवल ढोंग होता हैं। पर्दे के पीछे वह माया की दुनियां में ही रमण करते हैं। जिसे सन्यास कहा गया है उसमें किसी से मिलना निषिद्ध नहीं है पर कोई संपर्क बनाना वर्जित है। कहीं मित्रता या गुरु-शिष्य का संबंध बनाने वाले को सन्यासी नहीं कहा जा सकता। सन्यासियों को लिये कठिन नियम है। उसे किसी से अभद्र शब्द नहीं बोलना चाहिये और न कभी उत्तेजित होना चाहिये। अगर उन नियमों को देखा जाये तो आजकल किसी को सन्यासी नहीं मानना जा सकता है। फिर भी कुछ ऐसे गृहस्थ होते हैं जो सन्यास भले ही न लें पर ईश्वर के प्रति भक्ति तथा ज्ञान नियमित रूप से प्राप्त करत हैं तो उनका भाव सन्यास को ही प्राप्त हो जाता है। ऐसे लोग सदाचार से जीवन व्यतीत करते हैं। जीवन में गृहस्थाश्रम में रहते हुए भी आचार विचार के संबंध में जो सन्यासियों के बारे में है उनको मानकर जीवन प्रसन्नता से व्यतीत किया जा सकता है। गृहस्थाश्रम में रहते हुए मित्रा आदि तो बनाने पड़ते हैं पर सन्यास भाव वाले उनसे किसी स्वार्थ पूरे होने की आशा नहीं करते क्योंकि भविष्य में उसके पूर्ण न होने पर निराशा का भाव मन में नहीं आता।
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संकलक एवं संपादक-दीपक भारतदीप
1 comment:
ठीक लिखा आपने अगर सन्यासी बन कर ए.सी आश्रम मे रहना ए,सी कार मे घूमना है तो उस से अच्छा सदाचारी ग्रहस्थी है नववर्ष मुबारक हो
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